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आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद
प्रलम्ब-फल, अम्बाडगफल, ताल-प्रलम्ब-फल, वल्ली-प्रलम्ब-फल, सुरभि-प्रलम्ब-फल, शल्यकी का प्रलम्ब-फल तथा इसी प्रकार का अन्य प्रलम्ब फल का प्रकार, जो कच्चा और अशस्त्रपरिणत है, उसे अप्रासुक और अनेषनीय समझ कर मिलने पर ग्रहण न करे ।
__ गृहस्थ के घर में आहारार्थ प्रविष्ट साधु या साध्वी अगर वहाँ जाने-कि पीपल का प्रवाल, बड़ का प्रवाल, पाकड़ वृक्ष का प्रवाल, नन्दीवृक्ष का प्रवाल, शल्यकी वृक्ष का प्रवाल, या अन्य उस प्रकार का कोई प्रवाल है, जो कच्चा और अशस्त्र-परिणत है, तो ऐसे प्रवाल को अप्रासुक और अनेषणीय जान कर मिलने पर भी ग्रहण न करे ।
__ साधु या साध्वी यदि जाने-कि शलाद फल, कपित्थ फल, अनार फल, बेल फल अथवा अन्य इसी प्रकार का कोमल फल जो कच्चा और अशस्त्र-परिणत है, तो उसे अप्रासुक एवं अनेषणीय जान कर प्राप्त होने पर भी न ले ।
गृहस्थ के घर में भिक्षा के लिए प्रविष्ट साधु या साध्वी यदि जाने, कि - उदुम्बर का चूर्ण बड़ का चूर्ण, पाकड़ का चूर्ण, पीपल का चूर्ण अथवा अन्य इसी प्रकार का चूर्ण है, जो कच्चा व थोड़ा पीसा हुआ है और जिसका योनि-बीज विध्वस्त नहीं हुआ है, तो उसे अप्रासुक और अनेषणीय जान कर प्राप्त होने पर भी न ले ।
[३८०] साधु या साध्वी यदि जाने कि वहाँ भाजी है; सड़ी हुई खली है, मधु, मद्य, घृत और मद्य के नीचे का कीट बहुत पुराना है तो उन्हें ग्रहण न करे, क्योंकि उनमें प्राणी पुनः उत्पन्न हो जाते हैं, उनमें प्राणी जन्मते हैं, संवर्धित होते हैं, इनमें प्राणियों का व्युत्क्रमण नही होता, ये प्राणी शस्त्र-परिणत नहीं होते, न ये प्राणी विध्वस्त होते हैं । अतः उसे अप्रासुक और अनेषणीय जानकर प्राप्त होने पर भी उसे ग्रहण न करे ।
[३८१] गृहस्थ के घर में भिक्षार्थ प्रविष्ट साधु या साध्वी यदि यह जाने कि वहाँ इक्षुखण्ड- है, अंककरेलु, निक्खारक, कसेरू, सिंघाड़ा एवं पूतिआलुक नामक वनस्पति है, अथवा अन्य इसीप्रकार की वनस्पति विशेष है जो अपक्व तथा अशस्त्र-परिणत है, तो उसे अप्रासुक और अनेषणीय जानकर मिलने पर भी ग्रहण न करे ।।
गृहस्थ के यहाँ भिक्षा के लिए प्रविष्ट साधु या साध्वी यदि यह जाने कि वहाँ नीलकमल आदि या कमल की नाल है, पद्म कन्दमूल है, या पद्मकन्द के ऊपर की लता है, पद्मकेसर है, या पद्मकन्द है तो इसी प्रकार का अन्य कन्द है, जो कच्चा है, शस्त्र-परिणत नहीं है तो उसे अप्रासुक व अनेषणीय जानकर मिलने पर भी ग्रहण न करे ।
[३८२] साधु या साध्वी यदि यह जाने कि वहाँ अग्रबीज वाली, मूलबीज वाली, स्कन्धबीज वाली तथा पर्वबीज वाली वनस्पति है एवं अग्रजात, मूलजात, स्कन्धजात तथा पर्वजात वनस्पति है, तथा कन्दली का गूदा कन्दली का स्तबक, नारियल का गूदा, खजूर का गूदा, ताड़ का गूदा तथा अन्य इसी प्रकार की कच्ची और अशस्त्र-परिणत वनस्पति है, उसे अप्रासुक और अनेषणीय समझकर कर मिलने पर भी ग्रहण न करे ।
गृहस्थ के यहाँ भिक्षार्थ प्रविष्ट साधु या साध्वी यदि यह जाने कि वहाँ ईख है, छेद वाला काना ईख है तथा जिसका रंग बदल गया है, जिसकी छाल फट गई है, सियारों ने थोड़ा-सा खा भी लिया है ऐसा फल है तथा बेंत का अग्रभाग है, कदली का मध्य भाग है एवं इसी प्रकार की अन्य कोई वनस्पति है, जो कच्ची और अशस्त्र-परिणत है, तो उसे साधु