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आचार-२/१/१/८/३८२
अप्रासुक और अनेषणीय समझ कर मिलने पर भी ग्रहण न करे ।
गृहस्थ के घर में आहारार्थ प्रविष्ट साधु या साध्वी यदि यह जाने कि वहाँ लहसुन है, लहसुन का पत्ता, उसकी नाल, लहसुन का कंद या लहसुन की बाहर की छाल, या अन्य प्रकार की वनस्पति है जो कच्ची और अशस्त्र-परिणत है, तो उसे अप्रासुक और अनेषणीय मानकर मिलने पर भी ग्रहण न करे ।।
साधु या साध्वी यदि यह जाने के वहाँ आस्थिक वृक्ष के फल, टैम्बरु के फल, टिम्ब का फल, श्रीपर्णी का फल, अथवा अन्य इसी प्रकार के फल, जो कि गड्ढे में दबा कर धुंए आदि से पकाये गए हों, कच्चे तथा शस्त्र-परिणत नहीं हैं, ऐसे फल को अप्रासुक और अनेषणीय समझ कर मिलने पर भी नहीं लेना चाहिए ।
साधु या साध्वी यदि यह जाने के वहाँ शाली धान आदि अन्न के कण हैं, कणों से मिश्रित छाणक है, कणों से मिश्रित कच्ची रोटी, चावल, चावलों का आटा, तिल, तिलकूट, तिलपपड़ी है, अथवा अन्य उसी प्रकार का पदार्थ है जो कि कच्चा और अशस्त्र-परिणत है, उसे अप्रासुक और अनेषणीय जान कर मिलने पर भी ग्रहण न करे ।
यह (वनस्पतिकायिक आहार-गवेषणा) उस भिक्षु या भिक्षुणी की (ज्ञान-दर्शन-चारित्रादि आदि से सम्बन्धित) समग्रता है । ऐसा मैं कहता हूँ ।
| अध्ययन-१ उद्देशक-९ [३८३] यहाँ पूर्व में, पश्चिम में, दक्षिण में या उत्तर दिशा में कई सद्गृहस्थ, उनकी गृहपत्नियाँ, उनके पुत्र-पुत्री, उनकी पुत्रवधू, उनकी दास-दासी, नौकर-नौकरानियाँ होते हैं, वे बहुत श्रद्धावान् होते हैं और परस्पर मिलने पर इस प्रकार बातें करते हैं ये पूज्य श्रमण भगवान् शीलवान, व्रतनिष्ठ, गुणवान्, संयमी, आस्त्रवों के निरोधक, ब्रह्मचारी एवं मैथुनकर्म से निवृत होते हैं । आधाकर्मिक अशन आदि खाना-पीना इन्हें कल्पनीय नहीं है । अतः हमने अपने लिए जो आहार बनाया है, वह सब हम इन श्रमणों को दे देंगे, और हम बाद में अशनादि चतुर्विध आहार बना लेंगे।" उनके इस वार्तालाप को सुनकर तथा जानकर साधु या साध्वी इस प्रकार के (दोषयुक्त) अशनादि आहार को अप्रासुक और अनेषणीय मानकर मिलने पर ग्रहण न करे ।
[३८४] एक ही स्थान पर स्थिरवास करने वाले या ग्रामानुग्राम विचरण करनेवाले साधु या साध्वी किसी ग्राम में यावत् राजधानी में भिक्षाचर्या के लिए जब गृहस्थों के यहाँ जाने लगें, तब यदि वे यह जान जाए कि इस गाँव में यावत् राजधानी में किसी भिक्षु के पूर्वपरिचित या पश्चात्-परिचित गृहस्थ, गृहस्थपत्नी, उसके पुत्र-पुत्री, पुत्रवधू, दास-दासी, नौकरनौकरानियाँ आदि श्रद्धालुजन रहते हैं तो इस प्रकार के घरों में भिक्षाकाल से पूर्व आहार-पानी के लिए जाए-आए नहीं ।
केवली भगवान् कहते हैं यह कर्मो के आने का कारण है, क्योंकि समय से पूर्व अपने घर में साधु या साध्वी को आए देखकर वह उसके लिए आहार बनाने के सभी साधन जुटाएगा । अतः भिक्षुओं के लिए तीर्थंकरों द्वारा पूर्वोपदिष्ट यह प्रतिज्ञा है, यह हेतु, कारण या उपदेश है कि वह इस प्रकार के परिचित कुलों में भिक्षाकाल से पूर्व आहारपानी के लिये