________________
५२
आगमसूत्र - हिन्दी अनुवाद
प्रतिपादन करे । वह भिक्षु समस्त प्राणियों, सभी भूतों सभी जीवों और समस्त सत्त्वों का हितचिन्तन करके धर्म का व्याख्यान करे ।
[२०८] भिक्षु विवेकपूर्वक धर्म का व्याख्यान करता हुआ अपने आपको बाधा न पहुँचाए, न दूसरे को बाधा पहुँचाए और न ही अन्य प्राणों, भूतों, जीवों और सत्त्वों को बाधा पहुँचाए । किसी भी प्राणी को बाधा न पहुँचाने वाला तथा जिससे प्राण, भूत, जीव और सत्त्व का वध हो, तथा आहारादि की प्राप्ति के निमित्त भी ( धर्मोपदेश न करनेवाला) वह महामुनि संसार-प्रवाह में डूबते हुए प्राणों, भूतों, जीवों और सत्त्वों के लिए असंदीन द्वीप की तरह शरण होता है ।
इस प्रकार वह (संयम में) उत्थित, स्थितात्मा, अस्नेह, अनासक्त, अविचल, चल, अध्यवसाय को संयम से बाहर न ले जानेवाला मुनि होकर परिव्रजन करे । वह सम्यग्दृष्टि मुनि पवित्र उत्तम धर्म को सम्यक्रूप में जानकर ( कषायों और विषयों) को सर्वथा उपशान्त करे इसके लिए तुम आसक्ति को देखो ।
ग्रन्थी में गृद्ध और उनमें निमग्न बने हुए, मनुष्य कामों से आक्रान्त होते है । इसलिए मुनि निःसंग रूप संयम से उद्विग्न - खेदखिन्न न हो ।
जिन संगरूप आरम्भों से हिंसक वृत्ति वाले मनुष्य उद्विग्र नहीं होते, ज्ञानी मुनि उन सब आरम्भों को सब प्रकार से, सर्वात्मना त्याग देते हैं । वे ही मुनि क्रोध, मान, माया और लोभ का वमन करने वाले होते हैं ।
I
ऐसा मुनि त्रोटक कहलाता है । ऐसा मैं कहता हूँ ।
-
[२०९] शरीर के व्यापात को ही संग्रामशीर्ष कहा गया है । (जो मुनि उसमें हार नहीं खाता), वही (संसार का ) पारगामी होता है ।
आहत होने पर भी मुनि उद्विग्न नहीं होता, बल्कि लकड़ी के पाटिये की भांति रहता है । मृत्युकाल निकट आने पर ( विधिवत् संलेखना से) जब तक शरीर का भेद न हो, तब तक वह मरणकाल की प्रतीक्षा करे । ऐसा मैं कहता हूँ ।
अध्ययन - ६ - का मुनिदीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण
अध्ययन- ७ - महापरिज्ञा
ईस अध्ययन का नाम 'महापरिज्ञा' हे, जो वर्तमान में अनुपलब्ध (विच्छिन्न) है । अध्ययन-८ - विमोक्ष
उद्देशक - १
[२१०] मैं कहता हूँ - समनोज्ञ या असमनोज्ञ साधक को अशन, पान, खाद्य, स्वाद्य, वस्त्र, पात्र, कंबल या पादप्रोंछन आदरपूर्वक न दे, न देने के लिए निमंत्रित करे और न उनका वैयावृत्य करे ।
[२११] (असमनोज्ञ भिक्षु कदाचित् मुनि से कहे ( मुनिवर !) तुम इस बात को निश्चित समझ लो - ( हमारे मठ या आश्रम में प्रतिदिन) अशन, पान, खाद्य, स्वाद्य, वस्त्र, पात्र, कम्बल या पादप्रोंछन ( मिलता है ) । तुम्हें ये प्राप्त हुए हों या न हुए हों तुमने भोजन