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आगमसूत्र - हिन्दी अनुवाद
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भलीभाँति जान कर आचरण में लाए ।
[२३९] जिस भिक्षु के मन में यह अध्यवसाय होता है कि मैं वास्तव में इस समय इस शरीर को क्रमशः वहन करने में ग्लान हो रहा हूँ । वह भिक्षु क्रमशः आहार का संक्षेप करे । आहार को क्रमशः घटाता हुआ कषायों को भी कृश करे । यों करता हुआ समाधिपूर्ण लेश्या वाला तथा फलक की तरह शरीर और कपाय, दोनों ओर से कृश बना हुआ वह भिक्षु समाधिमरण के लिए उत्थित होकर शरीर के सन्ताप को शान्त कर ले ।
इस प्रकार संलेखना करनेवाला वह भिक्षु ग्राम, यावत् राजधानी में प्रवेश करके घास की याचना करे । उसे लेकर एकान्त में चला जाए । वहाँ जाकर जहाँ कीड़ों के अंडे, यावत् प्रतिलेखन कर फिर उसका कई बार प्रमार्जन करके घास का बिछौना करे । शरीर, शरीर की प्रवृत्ति और गमनागमन आदि ईर्या का प्रत्याख्यान करे (इस प्रकार प्रायोपगमन अनशन करके शरीर विमोक्ष करे ) ।
यह सत्य है । इसे सत्यवादी वीतराग, संसार - पारगामी, अनशन को अन्त तक निभायेगा या नहीं ? इस प्रकार की शंका से मुक्त, यावत् परिस्थितियों से अप्रभावित (अनशन-स्थितमुनि प्रायोपगमन - अनशन को स्वीकार करता है ) । वह भिक्षु प्रतिक्षण विनाशशील शरीर को छोड़ कर, नाना प्रकार के उपसर्गों और परीषहों पर विजय प्राप्त करके इस घोर अनशन की अनुपालना करे । ऐसा करने पर भी उसकी यह काल - मृत्यु होती है । उस मृत्यु से वह अन्तक्रिया करनेवाला भी हो सकता है ।
इस प्रकार यह मोहमुक्त भिक्षुओं का आयतन हितकर यावत् जन्मान्तर में भी साथ चलनेवाला है । ऐसा मैं कहता हूँ ।
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अध्ययन-८- उद्देशक- ८
[२४०] जो (भक्तप्रत्याख्यान, इंगितमरण एवं प्रायोपगमन, ये तीन ) विमोह क्रमशः हैं, धैर्यवान्, संयम का धनी एवं मतिमान् भिक्षु उनको प्राप्त करके सब कुछ जानकर एक अद्वितीय (समाधिमरण को अपनाए ) ।
[२४१] वे धर्म के पारगामी प्रबुद्ध भिक्षु दोनों प्रकार से हेयता का अनुभव करके क्रम से विमोक्ष का अवसर जानकर आरंभ से सम्बन्ध तोड़ लेते हैं ||
[२४२] वह कषायों को कृश करके, अल्पाहारी बनकर परीषहों एवं दुर्वचनों को सहन करता है, यदि ग्लानि को प्राप्त होता है, तो भी आहार के पास न जाये ।
[२४३] (संलेखना एवं अनशन - साधना में स्थित श्रमण ) न तो जीने की आकांक्षा करे, न मरने की अभिलाषा करे । जीवन और मरण दोनों में भी आसक्त न हो ।।
[२४४] वह मध्यस्थ और निर्जरा की भावना वाला भिक्षु समाधि का अनुपालन करे । आन्तरिक तथा बाह्य पदार्थो का व्युत्सर्ग करके शुद्ध अध्यात्मएषणा करे ।।
[२४५] यदि अपनी आयु के क्षेम में जरा सा भी उपक्रम जान पड़े तो उस संलेखना काल के मध्य में ही पण्डित भिक्षु शीघ्र पण्डितमरण को अपना ले ||
[२४६] (संलेखन-साधक) ग्राम या वन में जाकर स्थण्डिलभूमि का प्रतिलेखन करे, उसे जीव-जन्तुरहित स्थान जानकर मुनि ( वहीं ) घास बिछा ले ।