Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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दसवाँ चरमपद]
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___ [७८२ उ.] गौतम! द्विप्रदेशिक स्कन्ध १. कथंचित् चरम [D] है, २. अचरम नहीं है, ३. कथंचित् अवक्तव्य ०० है। शेष तेईस भंगो का निषेध करना चाहिए।
७८३. तिपएसिए णं भंते ! खंधे पुच्छा। __ गोयमा! तिपएसिए खंधे सिय चरिमे 000 १ नो अचरिमे २ सिय अवत्तव्वए .°३ नो चरिमाइं ४ णो अचरिमाइं ५ नो अवत्तव्वयाइं ६, नो चरिमे य अचरिमे य ७ नो चरिमे य अचरिमाइं ८ सिय चरिमाइं च अचरिमे यवन०९ नो चरिमाइं च १० सिय चरिमे य अवत्तव्वए य न ११ सेसा (१५) भंगो पडिसेहेयव्वा।
[७८३ प्र.] भगवन् ! त्रिप्रदेशिक स्कन्ध के विषय में (मेरी उपर्युक्त प्रकार की) पृच्छा है, (उसका समाधान क्या है?) ___ [७८३ उ.] गौतम! त्रिपदेशिक स्कन्ध १. कथञ्चित् चरमक है, २. अचरम नहीं है, ३. कथंचित् अवक्तव्य [°°] है, ४. वह न तो अनेक चरमरूप है, ५. न अनेक अचरमरूप है, ६. न अनेक अवक्तव्यरूप है, ७. न एक चरम और एक अचरम है, ८. न एक चरम और अनेक अचरमरूप है, ९. कथंचित् अनेक चरमरूप और एक अचरम ००० है, १०. (वह) अनेक चरमरूप और अनेक अचरमरूप नहीं है, (किन्तु) ११. कथंचित् एक चरम और एक अवक्तव्य [२०] है। शेष पन्द्रह भंगों का निषेध करना चाहिए।
७८४. चउपएसिए णं भंते ! खंधे पुच्छा।
गोयमा। चउपएसिए णं खंधे सिय चरिमे ०० ०० १ नो अचरिमे २ सिय अवत्तव्वए 88 ३ नो चरिमाइं ४ नो अचरिमाइं ५ नो अवत्तव्वयाइं ६, नो चरिमे य अचरिमे य ७ नो चरिमे य अचरिमाइं च ८ सिय चरिमाइं च अचरिमे य[0]००९ सिय चरिमाइं च अचरिमाइं चालान १०, सिय चरिम य अवत्तव्वए य ००% ११ सिय चरिमे य अवत्तव्वयाइं च १२ नो चरिमाइं च अवत्तव्वए य १३ नो चरिमाइं च अवत्तव्वयाइंच १४, नो अचरिमे य अवत्तव्वए य १५ नो अचरिमे य अवत्तव्वयाइं च १६ नो अचरिमाइं च अवत्तव्वए य १७ नो अचरिमाइं च अवत्तव्वयाइं च १८, नो चरिमे य अचरिमे य अवत्तव्वए य १९ नो चरिमे य अचरिमे य अवत्तव्वयाइं च २० नो चरिमे य अचरिमाइं च अवत्तव्वए य २१ नो चरिमे य अचरिमाइं च अवत्तव्वयाइं च २२ सिय चरिमाइं च अचरिमे य अवत्तव्वए य नगन २३, सेसा (३) भंगा पडिसेहेयव्वा। ... [७८४ प्र.] भगवन् ! चतुष्पदेशिक स्कन्ध के विषय में (मेरी पूर्ववत्) पृच्छा है, (उसका क्या समाधान है ?)
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