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एक अनुशीलन
दी निकाय, सुत्तनिपात" आदि बौद्धपिटकों में भी भगवान् महावीर का उल्लेख "निगंठ नातपुत "
के रूप में किया गया है।
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दिगंबर साहित्य में महावीर का वंश 'नाथ" माना है। 'धनंजयनाममाला ३० में नाथ का उल्लेख है । उत्तर पुराण में भी 'नाथ' वंश' का उल्लेख हुआ है। कितने ही मूर्धन्य मनीषियों का अभिमत है कि प्रस्तुत आगम का नाम भगवान् महावीर के वंश को अनुलक्ष्य में लेकर किया गया है । ज्ञातृधर्मकथा या नाथधर्मकथा से तात्पर्य है भगवान् महावीर की धर्मकथा । पाश्चात्य चिन्तक वेबर" का मानना है कि जिस ग्रंथ में ज्ञातृवंशीय महावीर की धर्मकथा हो वह 'नायाधम्मकहा' है। किन्तु समवायांग नंदी सूत्र १४ में आगमों का जो परिचय प्रदान किया गया है उसके आधार से ज्ञातृवंशी महावीर की धर्मकथा यह अर्थ संगत नहीं लगता । वहाँ पर यह स्पष्ट किया गया है कि ज्ञाताधर्मकथा में ज्ञात (उदाहरणभूत व्यक्तियों) के नगर, उद्यान, आदि का निरूपण किया गया है। प्रस्तुत आगम के प्रथम अध्ययन का नाम " उक्खित्तणाए " ( उत्क्षितज्ञात) है। यहाँ पर ज्ञात का अर्थ उदाहरण ही सही प्रतीत होता है।
प्रथम श्रुतस्कंध में कितनी ही कथाएँ — ऐतिहासिक व्यक्तियों से सम्बन्धित हैं और कितनी ही कथाएँ कल्पित हैं। प्रथम अध्ययन का मुख्य पात्र मेघकुमार ऐतिहासिक व्यक्ति है। तुंबे आदि की कुछ कथाएँ, रूपक के रूप में हैं। उन रूपक कथाओं का उद्देश्य भी प्रतिबोध प्रदान करना है।
द्वितीय श्रुतस्कंध में दस वर्ग हैं। उनमें से प्रत्येक धर्मकथा में ५००-५०० आख्यायिकाएँ हैं और एक एक आख्यायिका में ५००-५०० उप- आख्यायिकाएँ हैं और एक उप-आख्यायिका में ५००-५०० आख्यायिको पाख्यायिकाएँ हैं पर वे सारी कथाएँ आज उपलब्ध नहीं है।
मेघकुमार : प्रथम श्रुतस्कंध के प्रथम अध्ययन में मेघकुमार की कथा दी गई है । मेघकुमार राजा श्रेणिक का पुत्र है । भगवान् महावीर के त्याग - वैराग्य से छलछलाते हुए प्रवचन को श्रवण कर अपनी आठों पत्नियों का परित्याग कर प्रव्रज्या ग्रहण करता है ।
प्रथम अध्ययन में आये हुए अनेक व्यक्ति ऐतिहासिक हैं । सम्राट श्रेणिक की जीवनगाथाएँ जैन साहित्य में ही नहीं, बौद्ध साहित्य में भी विस्तार से आई है" । अभयकुमार, जो श्रेणिक का पुत्र था, प्रबल प्रतिभा का धनी था। जैन और बौद्ध दोनों ही परम्पराएँ उसे अपना अनुयायी मानती है ४१ । और उसकी प्रतापपूर्ण प्रतिभा की अनेक घटनाएँ जैन साहित्य में उट्टङ्कित ४२ ।
अनुत्तरौपपातिक सूत्र में अभयकुमार के जैनदीक्षा लेने का उल्लेख है। * बौद्ध दीक्षा लेने का
२७. दीघनिकाय सामञ्ञफल सुप्त पृ. १८ २१, दीघनिकाय संगीति परियाय सुत्त पृ. २८२, दीर्घनिकाय महापरिनिव्वाणसुत्त पृ. १४५, दीघनिकाय पासादिक सुत्त पृ. २५२ ॥ २८. सुत्तनिपात -सुभिय सुत्त पृ. १०८ ॥ २९. तिलोयपण्णत्ति ४-५५०, जयधवला पृ. १३५ ॥ ३०. धनंजय - नाम-माला, ११५ ॥ ३१. उत्तरपुराण पृ. ४५० ॥ ३२. Stories from The Dharma of Naya. इ, एं, जिं १९, पृ. ६६ ॥ ३३. समवायांग प्रकीर्णक, समवाय सूत्र, ९४ ॥ ३४. नंदीसूत्र - ८५ ॥ ३५. नंदीसूत्र, बम्बई, सूत्र ९२, पृ. ३७ ॥ ४० सुत्तनिपात पवज्जासुत्त २ (क) बुद्ध चरित स. ११ श्लो ७२ (ग) विनयपिटक - महावग्गो – पृ. ३५ - ३८ ॥ ४१. (i) भरतेश्वर बाहुबलि वृत्ति, आवश्यक चूर्णि, धर्मरत्नप्रकरण आदि । (ii) थेरीगाथा अट्ठकथा ३१-३२, मज्झिमनिकाय - अभयराजकुमार सुत्त, धम्मपद अट्ठकथा आदि ॥ ४२. त्रिषष्टिशला का पुरुषचरित्र १० - ११॥ ४३. अनुत्तरौपपातिक १-१० ॥
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