Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra
Author(s): Jambuvijay, Dharmachandvijay
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay

Previous | Next

Page 640
________________ प्रथमं परिशिष्टम् ४७५ وم २४९ विशिष्टशब्दाः पृष्ठाकाः | विशिष्टशब्दाः पृष्ठाङ्काः वामपाद ३०४ वाससऊणातिं वामहत्थ २८९ वाससत ६२, ६९, १९०, ३६८ वामेत्तए वाससयसहस्साति १४५ वायणा ५७, ५८, ६९ वाससहस्सातिं वायणोल्लियमहल्लरूव वासहरपब्वय १४१ वायवसविपुलगगणचवलपरिसकिरेसु वासारत्त १३६, १९७ वाया २१३, २१४ वासारचउउपन्वतो १९७ वायाइद्ध वासुदेव १०७, १०८, १०९, ११०, वारंवारेणं २९३ १११, ११२, २८०, २८१, वारा १९१ २८२, २८३, २८७, २९८, वारातिं ३०९ २९९, ३००, ३०१, ३०२, वारिजमाणीए २७८, ३६१ ३०३, ३०४, ३०५-३१६ वारिणा वासुदेवपामोक्ख २८४, २८५, २८६, २८७, वारिधार ५०, ५५, ११३ २८९,२९०,२९१,२९२,२९३ वाल वासुदेवभद्द ३११ वालग वासुदेवमातरो वालबंधेहिं ३२९ २३८, ३१६, वालुयाकवलो वाहणगमणं वावण्ण २१६ वाहमोक्व १९२, १९९, २०० वाहियाण २२८ वावरिंसु १५४ विइण्णवियारे ६०, ७९, १९७, १९८, २००, विउल ३३, ४१, ४९, ६२, ७३, २२५ ७५, ८३, ८९, १११, १६१, वावेत्ता १३४ १८४, १९१, १९६, २३०, वास ७, ३८, ६३, ६४, ६९, ७६, २६७, २७२, २७३, २९९, ८०, ८१, ९२, १२२, १२९, ३५३, ३५६ १४१, १४४, १४६, १५९, विउलभत्तपाण १७८, १८१, १८७, २०१, विउवह २०३ २२२, २२३, २२४, २३५, विउव्वति ३०९ २४४, २४९, २५५, २६१, विउसरणयाए ४२ २६५, २७९, २९५, २९६, विंझगिरिपायमूल ६३, ६४, ६५ २९८, ३१०-३१२, ३१८, विहणिज ३२०, ३४७, ३४८, ३५६, विकोसियधारासिजुयलसमसरिस ३५७, ३६२, ३६९ तणुयचंचलगलंतरसलोलचवलवासघर २४७, २६९, २७०, २७३, फुरफुरेंतनिल्लालियगजीह २७४ विक्कंति २९० वासघरदुवार २७. । विकते १२, १९ वावत्ती वावी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 638 639 640 641 642 643 644 645 646 647 648 649 650 651 652 653 654 655 656 657 658 659 660 661 662 663 664 665 666 667 668 669 670 671 672 673 674 675 676 677 678 679 680 681 682 683 684 685 686 687 688 689 690 691 692 693 694 695 696 697 698 699 700 701 702 703 704 705 706 707 708 709 710 711 712 713 714 715 716 717 718 719 720 721 722 723 724 725 726 727 728 729 730 731 732 733 734 735 736 737