Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra
Author(s): Jambuvijay, Dharmachandvijay
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay

Previous | Next

Page 727
________________ ५६२ पञ्चमं परिशिष्टम् घोसणया इव तित्थंकरस्स सिवमग्गदेसणमणग्धं । चरगाइणो व्व एथं सिवसुहकामा जिया बहवो ॥२॥ नंदिफलाइं व इह पिवसुहपडिवण्णगाण विसया उ। तब्भक्खणाओ मरणं जह तह विसएहिं संसारो ॥३॥ तव्वजणेण जह इठ्ठपुरगमो विसयवजणेण तहा। परमाणंदनिबंधण सिवपुरगमणं मुणेयव्वं ॥४॥" . १६. इहापि सूत्रे उपनयो न दृश्यते, एवं चासौ द्रष्टव्यः-- "सुबहू वि तवकिलेसो नियाणदोसेण दूसिनो संतो। न सिवाय दोवतीए जह किल सुकुमालियाजम्मे ॥ १॥" अथवा “ अमणुनमभत्तीए पत्ते दाणं भवे अणत्थाय । जह कडुयतुंबदाणं नागसिरिभवम्मि दोवईए ॥२॥" १७. इह विशेषोफ्नयमेवमाचक्षते "जह सो कालियदीवो अणुषमसोक्खो तहेह जइधम्मो। जह भासा तह साहू वणियध्वडणुकूलकारिजणा ॥१॥ जह सद्दाइ भगिद्धा पत्ता नो पासबंधणं आसा। तह विसएसु अगिद्धा बज्झति न कम्मुणा साहू ॥२॥ जह सच्छंद विहारो आसाणं तह इहं वरमुणीणं । जरमरणाईवज्जिय सायत्ताणंदनिव्वाणं ॥३॥ जह सद्दाइसु गिद्धा बद्धा आसा तहेह विसयरया। पावेंति कम्मबंध परमासुहकारणं घोरं ॥ ४ ॥ जह ते कालियदीवा णीया अन्नत्थ दुहगणं पत्ता। तह धम्मपरिब्भट्ठा अधम्मपत्ता इहं जीवा ॥५॥ पावेंति कम्मनरवइवसया संसारवाहियालीए । भासप्पमदएहिं व नेरइयाईहिं दुक्खाई ॥ ६ ॥" ति । १८. इह चैवं विशेषोपनयः "जह सो चिलाइपुत्तो सुंसुमगिद्धो अकजपडिबद्धो। धणपारद्धो पत्तो महाडवि वसणसयकलियं ॥ १॥ तह जीवो विसयसुहे लुद्धो काऊण पावकिरियामो। कम्मवसेणं पावइ भवाडवीए महादुक्खं ॥२॥ धणसेट्ठी विव गुरुणो पुत्ता इव साहवो भवो अडवी। सुयमंसमिवाहारो रायगिह इह सिवं नेयं ॥३॥ जह अडविनयरनित्थरणपावणत्थं तएहिं सुयमंसं। भुत्तं तहेह साहू गुरुण भाणाए आहारं ॥ ४ ॥ भवलंघणसिवपावणहेउ भुंजंति न उण गेहीए। वण्ण-बल-रुवहेउं च भावियप्पा महासत्ता ॥५॥" Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 725 726 727 728 729 730 731 732 733 734 735 736 737