Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra
Author(s): Jambuvijay, Dharmachandvijay
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay

Previous | Next

Page 725
________________ ५६० पञ्चमं परिशिष्टम् जह रोहिणी उ सुण्हा रोवियसाली जहत्थमभिहाणा। वद्धित्ता सालिकणे पत्ता सव्वस्स सामित्तं ॥ ११॥ तह जो भव्वो पाविय चयाई पालेइ अप्पणा सम्म । भन्नेसि वि भव्वाणं देइ अणेगेसि हियहेउं ॥ १२ ॥ सो इह संघपहाणो जुगप्पहाणे त्ति लहइ संसह । अप्पपरेसिं कल्लाशकारमो गोयमपहु व ॥ १३ ॥ तित्थस्स बुडि कारी अक्खेवणो कुतित्थियाईणं। विउसनरसेवियकमो कमेण सिद्धिं पि पावेइ ॥ १४ ॥" ति। ८. इह च यद्यपि दृष्टान्त-दान्तिकयोजना सूत्रेण न दर्शिता, तथापि द्रष्टव्या, अन्यथा ज्ञातत्त्वानुपपत्तेः। सा च किलैवम् - " उग्गतवसंजमवमो पगिट्टफलसाहगस्स वि जियरस । धम्मविसए वि सुहुमा वि होइ माया भणत्थाय ॥ १॥" ९. इह विशेषोपनयमेवं वर्णयन्ति व्याख्यातार: “जह रयणदीवदेवी तह एत्थं अविरई महापावा। जह लाहत्थी वणिया तह सुहकामा इहं जीवा ॥३॥ जह तेहिं भीएहिं दिटो आघायमंडले पुरिसो। संसारदुक्खभीया पासंति तहेव धम्मकह ॥ २॥ जह तेण तेसि कहिया देवी दुक्खाण कारणं घोरं । तो च्चिय नित्थारो सेलगजक्खाओ नन्नत्तो ॥ ३ ॥ तह धम्मकहा भव्वाण साहए विटअविरहसहावो। सयलदुहहेउभूया विसयाविरद त्ति जीवाणं ॥ ४॥ सत्ताण दुहत्ताणं सरणं चरणं जिणिंदपनत्तं। आणंदरूवनिधाणसाहणं तह य देसेइ ॥५॥ जह तेलि तरियव्वो रुद्दसमुद्दो तहेव संसारो। जह तेसि सगिहगमणं निव्वाणगमो तहा एस्थ ।। ६ ॥ जह भेलगपढ़ाओ भट्ठो देवीए मोहियमईओ। सावयसहस्सपउरंमि सायरे पाविओ निहणं ॥७॥ तह भविरईए नडिमो चरणंचुओ दुक्खसावयाइण्णे। निवडइ असारसंसारसायरे दारुणसरूवे ॥८॥ जह देवीए अक्खोहो पत्तो सट्ठाणजीवियसुहाई। तह चरणट्ठिओ साहू अक्खोहो जाइ निवाणं ॥ ९॥" १०. विशेषयोजना पुनरेवम् “जह चंदो तह साहू राहुवरोहो जहा तह पमामो। वण्णाइगुणगणो जह तहा खमाई समणधम्मो ॥१॥ पुण्णो वि पइदिणं जह हायंतो सव्वहा ससी नस्से। तह पुण्णचरित्तो वि हु कुसीलसंसग्गिमाईहिं ॥२॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 723 724 725 726 727 728 729 730 731 732 733 734 735 736 737