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पञ्चमं परिशिष्टम् जह रोहिणी उ सुण्हा रोवियसाली जहत्थमभिहाणा। वद्धित्ता सालिकणे पत्ता सव्वस्स सामित्तं ॥ ११॥ तह जो भव्वो पाविय चयाई पालेइ अप्पणा सम्म । भन्नेसि वि भव्वाणं देइ अणेगेसि हियहेउं ॥ १२ ॥ सो इह संघपहाणो जुगप्पहाणे त्ति लहइ संसह । अप्पपरेसिं कल्लाशकारमो गोयमपहु व ॥ १३ ॥ तित्थस्स बुडि कारी अक्खेवणो कुतित्थियाईणं।
विउसनरसेवियकमो कमेण सिद्धिं पि पावेइ ॥ १४ ॥" ति। ८. इह च यद्यपि दृष्टान्त-दान्तिकयोजना सूत्रेण न दर्शिता, तथापि द्रष्टव्या, अन्यथा ज्ञातत्त्वानुपपत्तेः। सा च किलैवम् -
" उग्गतवसंजमवमो पगिट्टफलसाहगस्स वि जियरस ।
धम्मविसए वि सुहुमा वि होइ माया भणत्थाय ॥ १॥" ९. इह विशेषोपनयमेवं वर्णयन्ति व्याख्यातार:
“जह रयणदीवदेवी तह एत्थं अविरई महापावा। जह लाहत्थी वणिया तह सुहकामा इहं जीवा ॥३॥ जह तेहिं भीएहिं दिटो आघायमंडले पुरिसो। संसारदुक्खभीया पासंति तहेव धम्मकह ॥ २॥ जह तेण तेसि कहिया देवी दुक्खाण कारणं घोरं । तो च्चिय नित्थारो सेलगजक्खाओ नन्नत्तो ॥ ३ ॥ तह धम्मकहा भव्वाण साहए विटअविरहसहावो। सयलदुहहेउभूया विसयाविरद त्ति जीवाणं ॥ ४॥ सत्ताण दुहत्ताणं सरणं चरणं जिणिंदपनत्तं। आणंदरूवनिधाणसाहणं तह य देसेइ ॥५॥ जह तेलि तरियव्वो रुद्दसमुद्दो तहेव संसारो। जह तेसि सगिहगमणं निव्वाणगमो तहा एस्थ ।। ६ ॥ जह भेलगपढ़ाओ भट्ठो देवीए मोहियमईओ। सावयसहस्सपउरंमि सायरे पाविओ निहणं ॥७॥ तह भविरईए नडिमो चरणंचुओ दुक्खसावयाइण्णे। निवडइ असारसंसारसायरे दारुणसरूवे ॥८॥ जह देवीए अक्खोहो पत्तो सट्ठाणजीवियसुहाई।
तह चरणट्ठिओ साहू अक्खोहो जाइ निवाणं ॥ ९॥" १०. विशेषयोजना पुनरेवम्
“जह चंदो तह साहू राहुवरोहो जहा तह पमामो। वण्णाइगुणगणो जह तहा खमाई समणधम्मो ॥१॥ पुण्णो वि पइदिणं जह हायंतो सव्वहा ससी नस्से। तह पुण्णचरित्तो वि हु कुसीलसंसग्गिमाईहिं ॥२॥
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