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शाताधर्मकथाङ्ग सूत्रटीकायामुपनयगाथाः
४. इह गाथा
“विसयेसु इंदियाइं रंभता रागदोसनिम्मुक्का। पावंति निम्वुइसुहं कुम्मु व्व मयंगदहसोक्खं ॥ १ ॥ अवरे उ अणत्थपरंपराओ पावेंति पापकम्मवसा। संसारसागरगया गोमाउग्गसियकुम्मु व्व ॥२॥"
५. इह गाथा
"सिढिलकयसंजमकजा वि होइउं उनमंति जइ पच्छा। संवेगामो तो सेलड ग्व अराहया होंति ॥ १॥"
६. इह गाथे
“जह मिउलेबालित्तं गुरुयं तुंबं महो वयइ एवं । आसवकयकम्मगुरू जीवा वञ्चति अहरगई। तं चेव तविमुक्कं जलोवरिं ठाइ जायलहुभावं। जह तह कम्मविमुक्का लोयग्गपट्ठिया होंति ॥ २॥"
७. अस्य च शातस्यैवं विशेषेणोपनयनं निगदन्ति, यथा--
“जह सेट्टी तह गुरुणो जह णाइजणो तहा समणसंघो। जह बहुया तह भव्वा जह सालिकणा तह वयाइं ॥ १ ॥ जह सा उझियनामा उज्झियसाली जहत्थमभिहाणा । पेसणगारित्तेणं असंखदुक्खक्खणी जाया ॥२॥ तह भव्वो जो कोई संघसमक्खं गुरुविदिनाई। परिवजिउं समुज्झइ महव्वयाई महामोहा ॥३॥ सो इह चेव भवंमी जणाण धिक्कारभायणं होई । परलोए उ दुहत्तो नाणाजोणीसु संचरइ ॥ ४॥" उक्तं च-धम्माओ भटुं" वृत्तम् , " इहेवऽहम्मो" वृत्तम् । "जह वा सा भोगवती जहत्थनामोवभुत्तसालिकणा । पेसणविसेसकारितणेण पत्ता दुहं चेव ॥ ५॥ तह जो महव्वयाई उवभुंजइ जीविय त्ति पालिंतो। माहाराइसु सत्तो चत्तो सिवसाहणिच्छाए ॥ ६ ॥ सो एत्थ जहिच्छाए पावइ आहारमाइ लिंगि त्ति । विउसाण नाइपुज्जो परलोयम्मी दुही चेव ॥ ७ ॥ जह वा रक्खियवहुया रक्खियसालीकणा जत्थक्खा । परिजणमण्णा जाया भोगसुहाई च संपत्ता ॥८॥ तह जो जीवो सम्म पडिवजित्ता महब्वए पंच। पालेइ निरइयारे पमायलेसं पिवजेतो ॥९॥ सो अप्पहिएकरई इहलोयम्मि वि विहिं पणयपभो। एगंतसुही जायइ परंमि मोक्खं पि पावे ॥१०॥
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