Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra
Author(s): Jambuvijay, Dharmachandvijay
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay

Previous | Next

Page 645
________________ ४८० २९४ १६१ वेरुलिय २९ वेसमणपर १८३ शाताधर्मकथाङ्गसूत्रान्तर्गतविशिष्टशब्दसूचिः विशिष्टशब्दाः पृष्ठाङ्काः । विशिष्टशब्दाः पृष्ठाङ्का: वेयणिज १९. संकामणि वेयालिं ३१६ संकाति वेयावच्च १४३ संकित ९९, १०० वेयावच्चकर १२७ संकिया १७१ वेयावडिय ७५, १२७ संकिलिस्संति वेरमण ११६, १५८ संकुचियथोरपीवरकर वेरिय संकुल संख २३, ५३, ११५, १४५, १६४, वेरुलियविमलदंड २३, ५३ १६६, १६७, ३०८, ३१२ वेलाउले ३१२ संखउलविमलणिम्मलदहियणगोवेसप्पसंगी ३३६ खीरफेणरयणियरप्पगासे वेसमण ४१, ८०, १४१, १५७, संखसद्द ३०८, ३११, ३१२ १८१, १८२ संखसद्दसामायारि ३१२ संखसमय ११४, ११५ वेसमणपडिमा ८०, ८२, ८४ संखसिलप्पवालरत्तरयणसंतसारवेसविहारकयनिकेया २७६ सावतेजे ४७ वेसागार संखिजाई वेसाघरएसु ३३६ संखिजाति २०३ वेसासिए संखिचविउलतेयलेस्स वेहाणस संखोभिजमाणी १९३ वेहास १५८, १९६, २०३ संगम ३३,६० सइयाण १०३ संगयगयहसिय सहरप्पयारी ३३६ संगयगयहसियभणियचेटियविलाससउण संलावुल्लावनिउणजुत्तोवयारसउणरतपजवसाण ३८ कुसला सउणक्य संगाम ३११ सउणि २८३ संगार सए १३, ८२, ८५, ८९, ९०, ९९, संगिण्हिताण ३० संगोवगा सएणं ६४,८९, ९०, ९४, २१७, ३१५ संगोवमाणी २८५ संगोविजमाणा २२७ सरहिं १०४, १४२, १८०, १८३, संगोविया १३६ २००, २८४ संगोवेह १३३ संकप्प २७, १३३, १३४, २१८, २२१, संगोवेमाण १०१, १३५, १३६, २३९ २२५,२३२,२३३,२३४, २३८, संगोवेमाणी ९९, १३३, १३४, २३९ २४१,२४३,२४५,२४९,२५१, संगोवेहि २४० २५९, २७६, २९५, ३११ । संघट्टिय ६० २७१ ९५ १२३ सएसु Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 643 644 645 646 647 648 649 650 651 652 653 654 655 656 657 658 659 660 661 662 663 664 665 666 667 668 669 670 671 672 673 674 675 676 677 678 679 680 681 682 683 684 685 686 687 688 689 690 691 692 693 694 695 696 697 698 699 700 701 702 703 704 705 706 707 708 709 710 711 712 713 714 715 716 717 718 719 720 721 722 723 724 725 726 727 728 729 730 731 732 733 734 735 736 737