Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra
Author(s): Jambuvijay, Dharmachandvijay
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay

Previous | Next

Page 704
________________ चतुर्थ परिशिष्टम् पृ० ६० पं० १. जाव, दृश्यतां पृ०५९ पं० ६-७ । पृ० ६१ पं० ९. जाव, दृश्यतां पृ० ५९ पं० ६-७ । पृ० ६२ पं० १५, १६ जाव, दृश्यतां पृ० १२५ पं० २ टि० १ । पृ० ६३ पं० ९. जाव, दृश्यतां टि० ९ । पं० १०. जाव, दृश्यतां तृतीयपरिशिष्टे पृ० ४९ पं० १४ सम्बन्धि टिप्पनकम् । पं० १३. जाव मंड', दृश्यतां पृ० ६० पं० १२ पृ० ६१ पं० ८ । पृ० ६४ पं० ४. जाव, दृश्यतां पृ० ५८ पं० १८ पृ० ६० । पं० ६. जाव, दृश्यतां पृ० ५९ पं० १-५ । पं० १२. जाव, दृश्यतां पृ० ५९ पं० ६-७ । पृ० ६५ पं० ३. जाव, दृश्यतां पृ० ६० पं० १-८ । पं० ८. जाव, दृश्यतां पृ० ६४ पं० १४ पृ० ६५ पं० ३ । पृ० ६७ पं० ३. जाव, दृश्यतां पृ० ६० पं० १० पृ० ६१ पं० ३ । पं० ९ जाव, दृश्यतां पृ० ६७ पं० ६-७ । पृ० ६८ पं० ६. जाव, दृश्यतां पृ० ६७ पं० ६-७ । पं० ७ जाव, दृश्यतां पृ० ६८ पं० ५-६ | पं० ९. जाव, दृश्यतां पृ० ६८ पं० ६-८ । पृ० ६९ पं० १, २. जाव, दृश्यतां पृ० १२५ पं० २ टि० १ । पं० ८ जाव, दृश्यतां पृ० ६८ पं० २-३ | पं० १२ जाव, दृश्यतां पृ० ५७ पं० ४-५ । पं० १३. जाव, दृश्यतां पृ० ५७ पं० ६-७ | पृ० ७० पं० ५. जाव, दृश्यतां पृ० ५६ पं० १२-१३ पं० ११ जाव, दृश्यतां पृ० ५६ पं० १९-२०। पृ० ७२ पं० १२, १३. जाव, दृश्यतां पृ० ७१ पं० ८-१० । पृ० ७६ पं० ६. जाव, दृश्यताम् औपपातिकसूत्रान्तर्गतः पाठः " ते णं काले णं ते णं समए णं समणे भगवं महावीरे आइगरे तित्थगरे सहसंबुद्धे पुरिसोत्तमे पुरिससी पुरिसवर पुंडरीए पुरिसवरगंधहत्थी अभयदए चक्खुदए मग्गदए सरणदए जीवदर दीवो ताणं सरणं गई पट्ठा धम्नवरचाउरंत वक्कवडी अप्पडिहयवरनाणदंसणधरे विअट्टच्छउमे जिणे जातिणे तार मुत्ते मोयए बुद्धे बोहए सम्बण्णू सव्वदरिसी सिव-मयल-मरु अ-मणंत-मक्खयमन्त्राबाह-मपुगरावत्तयं सिद्धिगइणामधेयं ठाणं संपाविउकामे अरहा जिणे केवली हत्थुस्से समचरं ठाठर वजरिसनारायसंत्रयणे अणुलोमवाउगे कंकग्गहणी कवोतपरिणामे सउणिपोस - पितरोरुपरिणए पउमुप्पलगंध सरिस निस्सास सुरभिवयणे छवी निरायंक- उत्तम पसत्थ-अइसेयfloatपले जल - मल्ल - कलंक सेय-रय दोस- वजिय- सरीर - निश्वलेवे छाया - उज्जो वियंगमंगे घनिचिय - सुबद्ध-लक्खगुण्णय - कूडागारनिभ-पिंडिअग्गसिरए सामलिबोंडघणनिचियच्छोडि - मिउ-विषय-पसस्थ- सुहुम - लक्खण-सुगंध - सुंदर - भुअमो अग- भिंग - नेल- कज्जल - पहिभमरगण - गिद्ध - निकुरंब - निचिय - कुंचिय-पयाहिणात्त मुद्धसिरए दालिम - पुप्फ-प्पगास-तवणिजसरिस - निम्मल-सुद्धि-केसंत के सभूमी निचिय - सुबद्ध-लक्खणुन्नय - कूडागार - निभ-पिंडियग्गसिरए छत्तागारुतमंग देसे णिव्वण-समलटु-मह-चंदद्ध-समणिडाले उडुवइ-पडिपुण्ण- सोमवयणे अल्लीण यमाणन्तसवणे सुरसवणेपीण-मंसल कवोल - देसभाए आणामिय- चावरुइल किन्हन्भराइतणु-कसिण-भिमुद्दे अवदालिय-पुंडरीयणयणे को आसिअ धवल-पत्तलच्छे गरुलायत उज्जुतुंगणासे उवचिअ - सिलप्पवाल- त्रिंबफल-सण्णिभाहरोट्ठे पंडुराससि-स अल- विमल- णिम्मल संखगोक्खीर-फेग-कुंद-दगरय-मुगालिआ धवलदंतसेढी अखंडदंते अप्फुडिअदंते अविरलदंते सुणिद्धदंते सुजायदंते एगदंतसेढी वित्र अणेगदंते हुयवहणिर्द्धतधोय-तत्त-तवणिज्ज-रत्त-तल-तालुजी हे अवडिय - Jain Education International For Private & Personal Use Only ५३९ www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 702 703 704 705 706 707 708 709 710 711 712 713 714 715 716 717 718 719 720 721 722 723 724 725 726 727 728 729 730 731 732 733 734 735 736 737