Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra
Author(s): Jambuvijay, Dharmachandvijay
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay
________________
विशिष्टशब्दाः विहूणा वीइजमाण वीइजमाणी वीइपहारसततालिया वीइवइत्ता वीइवयमाणा वीईवयमाण वीईवयमाणी
वुत्था
३०
वीणा
वीतिकंत वीतिवति वीतिवतित्ता वीतिवतिस्सति वीतिवयति वीतिवयमाण बीतीवतिस्सति वीतीवयमाण वीयणग वीयसोग
प्रथमं परिशिष्टम्
४७९ पृष्ठाकाः । विशिष्टशब्दाः
पृष्ठाका:
१७३, २५२ ३२, ३०२
वृत्त ५०, ५४, ५५, ८६, १०९,
१११, ११२, २३७, २४१, १९४
२४२, २४४, ३१४ ७६
१७९ १८१, २०२ वुप्पाएमाण
२१८
७, ३८ १९६ वेइय
१७६, २०२ ३२५, ३२७ वेउब्विय ८२, २२२ वेउव्वियसमुग्धाय २९,३१, १८३, १९९, २९५
२०६, ३०९ ३१४, ३१५ वेएमाण ९३, २१० वेग
६६, ६८, २९५ २०४, २०९, ३१३ वेगित २०३, ३१२ वेज
२२७, २३०, २३१, २३२ २५४, ३४७, ३५४
२२७, २३०, २३१, २३२
५२, २२७
१३० १४१, १७८
३०८ वेणइय
७,२६, ११३ वेणुदेव
३६५ १०७ वेतिय
३४, ५२,८५ १०७, २८० वेत्तप्पहारेहिं
३२९ ७१, ७२ वेदणा
३५३ ७३, १६०, २९० वेन्भार
२२५ १४३, १८९, १९० वेन्मारगिरिपायमूलं
वेभारगिरिकडगतडपायमूल ३३८ वेभारगिरिकडगपायमूल ७२ वेभारगिरिपायमूल
वेभारगिरिप्पवाततड-कडगविमुक्क ११, ९७, १८२, १९५,
वेभारपन्वए २३७, २६६ वेमाणिया
१८८ वेय २५३. वेयङ्कगिरिपायमूल
५८,६०, ६४ २१७, २१८ । वेयवगिरिसागरपेरंत
१०८ ९८, २२० वेयणा ६२, ६९, ९१, १२५, २५९, २१८
३५३
१०६,
वेजपुत वेढिम वेढेमाण
वेदो
वीर
२८०
वीरपुरिससाहस्सी वीरसाहस्सीण वीरसेणपामोक्त वीरासण वीरिय
वीस
वीसइम वीसंभघायग वीसतिमं-वीसतिमेणं वीसतिमाओ वीसत्थ
२५३
वीसमउ वीसमति वीससापरिणया वीसाएमाण बुग्गाहेमाण
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org
Page Navigation
1 ... 642 643 644 645 646 647 648 649 650 651 652 653 654 655 656 657 658 659 660 661 662 663 664 665 666 667 668 669 670 671 672 673 674 675 676 677 678 679 680 681 682 683 684 685 686 687 688 689 690 691 692 693 694 695 696 697 698 699 700 701 702 703 704 705 706 707 708 709 710 711 712 713 714 715 716 717 718 719 720 721 722 723 724 725 726 727 728 729 730 731 732 733 734 735 736 737