Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra
Author(s): Jambuvijay, Dharmachandvijay
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay
________________
विस
२२९
विसभूय
२३९
वियर
४७८
साताधर्मकथाङ्गसूत्रान्तर्गतविशिष्टशब्दसूचिः विशिष्टशब्दाः पृष्ठाकाः । विशिष्टशब्दाः
पृष्ठाकाः विमाणपत्थड १८३
२४७ विमाणवरपुंडरीय २९ विसंघडिए
१६५, १६६ विमुक्कबंधण
१३१,१५४ विसजितसेय विमुक्कसंधिबंधणा
विसजिया
१८०, ३१४ विम्हय २१८ विसजेमि
२४३ वियंगित्था २४४ विसभक्खण
२७१ वियंगेइ २४४
२५७, २५८ वियंगेति
विसम
७९ वियंभति
३११ विसमगिरिकडकोलंबगसन्निविद्या वियट्टमाण
विसयपडिकल
४७, ४८, ११० वियडी
विसयहेडं
__ ९२, ३४७ ३३, ६०, १०७, ३०३ विसयाणुलोम
४७, ४८, ११० वियरए ३२७ विसाएमाण
३४० वियसितसयपत्तपंडरीए ३९ विसायणिज
२१६ वियाणिय ३७ विसालकुच्छि
१५५ वियालचारी ३९, १०४ विसालवच्छ
१५५, १५७ विरस
१२४ विसुज्झमाणी ६३, ६९, १७९, १८८ विरह
७९, १७६
विसुद्ध विराड
२८४ विसुद्धपितिमातिवंस विराल
६७ विसेसे विराहगा
२१३, २१४ विस्संभघाती विरिंचति
१६७ विस्सरातिं
२०० विरुद्ध
२५२ विस्साएमाणा
२८५ विरेयण
२३१ विस्सुयजस
२९४ विलवमाण ८७, १९४, २०८, २०९,
विहग
१७, ५२ ३३५, ३४४ विहरति
४, ५, १२७, १२८ विलवमाणी ४५, ५०, ५५, १९४,
विहरमाण
४, १२४ २०५ विहरह
१७८ विलिए
१६८, २७१
विहराहि विलुपामो
३४० विहरित्तए
२७५, ३२०, विलेवणविहिं विवजमाणी
१९४
विहरेजाह विहसिय
२०७, २९६ विवन्न विवर
२७० विहाडिय
१०९ विविधसावयसयाउलघर
२०६ विहाडेति
३४१ विविह
१८७ ७५, ११९, २२९ विविहसत्यकुसल
विहुर
४९
३८
विहि
७२
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org
Page Navigation
1 ... 641 642 643 644 645 646 647 648 649 650 651 652 653 654 655 656 657 658 659 660 661 662 663 664 665 666 667 668 669 670 671 672 673 674 675 676 677 678 679 680 681 682 683 684 685 686 687 688 689 690 691 692 693 694 695 696 697 698 699 700 701 702 703 704 705 706 707 708 709 710 711 712 713 714 715 716 717 718 719 720 721 722 723 724 725 726 727 728 729 730 731 732 733 734 735 736 737