Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra
Author(s): Jambuvijay, Dharmachandvijay
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay

Previous | Next

Page 654
________________ प्रथमं परिशिष्टम् ४८९ विशिष्टशब्दा: पृष्ठाका विशिष्टशब्दाः पृष्टाका: सरिस ४६, १७३, २३७, २६७ सल्ल २८३ सरिसएहितो ४० सल्लाय सरिसग १६७ सल्लगत्तण ४७ सरिसपुरिस ३१२ सवणमाण ८६ सरिसय ५३, १६५ सवणयाए २६, ४५, ५५, ५७, २४० सरिसलावण्णजोवणगुणोववेय १४८ सवहसाविया २६, १३७ सरिसलावण्णरूवजोन्वणगुणोववेय ४०, ४६ सविजय २१, ३१ सरिसवया १२०, १२१ सविभवहिययमणनिव्वुइकरेसु ३३१, ३३२ सरिसिया ४०, ४६, १४१, १४८ सविसेस सरीर ३२, ५३, ७५, ८७, ९२, ९७, सवीस ६२, १४५ १०५, १११, १९२, २२४, सव्व ७५, १४२, १४७, २२९, २३५, २३१, २३५, २५९, २८१, २५८, २६० २९६, ३४३, ३४७ सम्वओ ८६ सरीरकुसल ४, ६८, ८५ सरीरकोहगं २५९, ३५३ सव्वंगवियंभिया १९४ सरीरंग ६२, ६९, ८५, ८६, १२५, सब्वंगसुंदरं १९९, २००, २०१, २०२, सम्वकज २३०, २६०, ३४६, ३५०, सम्वकजवट्टावए १३२, २४४ सव्वकामगुणिय १४३, १४४, १८२ सरीरचिंता सम्वगंध सरीरबाउसा २७६ सन्वग्गाही सरीरबाउसिया २७७, ३६०, ३६१, ३६३ सन्वजुई ३३, ४९ सरीररूवविणासिणि १११ सबद्यसिद्ध २६१, ३५४ सरीरवकंतीए सम्वट्ठाण २४४ सरीरसारक्खणहाए सम्वतो ८५, १०४, १०५, १०६, सरुहिर २०८ १०९, १७६, १८४, २०३, सरेहिं २६०,२७०,२९८-२९९,३४४, सरोग १२५, ३५० सव्वत्थ १४४, १९१ सललिय २०५, २८९ सन्वदुक्खप्पहीणमग सलाहणिज २३७, २६७ सन्वदुक्खाणं अंतं ३७० सलिलगंठिविप्पइरमाणयोरंसु सव्वदुक्खाणमंतं ७६, ९२, २६१, ३५४, वाएहिं १९४ ३६२ सलिलतलपइट्ठाण सम्वदेव १८८ सलिलतिक्खवेग १९३ सव्वपत्थिव २९० सलिलमतिवइत्ता सव्वपाव १५३ सलिलावती १४१, १७८ सम्वपुफ सलील सव्वबल १४६ ९२ ३४० १३१ ४९ ४९ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 652 653 654 655 656 657 658 659 660 661 662 663 664 665 666 667 668 669 670 671 672 673 674 675 676 677 678 679 680 681 682 683 684 685 686 687 688 689 690 691 692 693 694 695 696 697 698 699 700 701 702 703 704 705 706 707 708 709 710 711 712 713 714 715 716 717 718 719 720 721 722 723 724 725 726 727 728 729 730 731 732 733 734 735 736 737