Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra
Author(s): Jambuvijay, Dharmachandvijay
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay

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Page 642
________________ प्रथमं परिशिष्टम् ४७७ १२ वित्ति ३४२ विशिष्टशब्दाः पृष्ठाकाः । विशिष्टशब्दाः पृष्ठाकाः वितिकंत १३३, १३६, १४८, वितिगिंछसमावण्ण १५२, १६१, १६८, वितिगिच्छिया १७१ १८२, २०१, २१६, वितिमिर ५४, १४५ २२२, २२४, २२७, ३५, १०४, २३३, २६२ २३७, २३८, २४१, २४३, वित्थिण्ण ३१३, ३१४ २५१, २५३, २५५, २५६, वित्थिष्णविपुलबलवाहणे १२,१९ २५७, २६८, २६९, २७४, विदितजणणिग्गमपवेसा ३३६ २८५, २९१, २९२, २९८, विदिन्न ११० ३४०, ३४२, ३४६, ३५९ विदिन्नछत्तचामरवालवीयणिया विपुलकुलसमुन्भव विदिसा २०५ विपुलधण १३९ विदुर २८३ विपुलपणियभंडमायाए १९४ विदेसगमण ९५, २७१ विपुलभोगसमितिसमण्णागय विदेसस्थ ७९, १३२ विपुलमणि विदेसपरिमंडिय ३७ विपुलातिं ९१, २०१, २०९ विदेह १६६, १६९, १७१, १७५ विप्पओग ४५, २६७ विदेहराय १५१ विप्पकिरेमाण विदेहरायकनगा १६४, विप्पजहाय ११७, २०३, २०४, २७१ विदेहरायवरकण्णगा १७०, १७१ विप्पडिघाय विदेहरायवरकण्णा १७३,१७७ विप्पडिवन्न २२५, २३३ विदेहरायवरकन्ना १४८, १५१, १६२, विप्पमुक्क १६६, १७२, १७६, विप्परद्ध विदेहवरकण्णा १७४ विप्परिणय २४६ विदेहवररायकन्ना १६१, १६८ विप्परिणामित्तए २४५ विदेहाजणवय १५१ विप्परिणामेत्तए २०९ विहवं विप्पलाइत्था ३४२ विद्धंसणधम्म ३४३ विप्पलायमाण ६७ विद्धंसेमाण ३३८ विप्पवसिय ७९, १३२ विधुणामि २०२ विप्पियं २९५, ३०९,३१३, ३१५ विनयपरिणयमित्त २३२ विब्बोयकलिय १६८ विपरिणामित्तए २०४ विब्बोयविलसिय २०७ विपरिणामेत्तए १५९, १६० बिभजमाण विपलायमाणी विभूसिया २५७, २८०, २८२, २८६,२८७ विपुल २०, ३४, ७२, ७४, ७६, ८०, विमलसलिलपुन ८१, ८२, ८४, ८७, ८८, ९१, विमला ३६६ ९२, ९५, ९६, ९७, ९९,१०१, विमाण १९, १४५, १४६, १५९, १८३, १०८, ११५, १२६, १२७, । २२४, २३५, २७९, ३६७-३६९ ३५४ ६२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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