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एक अनुशीलन
(६) गौतम १३ – अपने साथ बैल रखने वाले । बैल को इस प्रकार की शिक्षा देते जो विविध तरह को करामात दिखाकर जन जन के मन को प्रसन्न करते। उससे आजीविका चलाने वाले ।
(७) गोत्रती १९४ – रघुवंश " में राजा दिलीप का वर्णन है कि जब गाय खाये तो खाना, पानी पिये तो पानी पीना, वह जब नींद ले तब नींद लेना और वह जब चले तब चलना । इस प्रकार व्रत रखने वाले ।
(८) गृहि धर्मी - गृहस्थधर्म को ही सर्वश्रेष्ठ मानने वाला और सतत गृहस्थ धर्म का चिन्तन करने वाला |
(९) धर्मचिन्तक 5- प्रतत धर्मशास्त्र का अध्ययन करने वाला । - किसी के प्रति विरोध न रखने वाला ।
(१०) अविरुद्ध १९५
अंगुत्तरनिकाय में १९६ भी अविरुद्धकों का उल्लेख है । प्रस्तुत मत के अनुयायी अन्य बाह्य क्रियाओं के स्थान पर, मोक्ष हेतु, विनय को आवश्यक' ६१९७ मानते हैं। वे देवगण, राजा, साधु, हाथी, घोडे, गाय-भैस-बकरी, गीदड, कौआ, बगुले आदि को देखकर उन्हें भी प्रणाम करते थे " | सूत्रकृतांग की टीका १९९ में विनयवादी के बत्तीस भेद किये हैं । आगम साहित्य में विनयवादी परिव्राजकों का अनेक स्थलों पर उल्लेख है। वैश्यायन जिसने गोशालक पर तेजोलेश्या का प्रयोग किया था २०० और मौर्य पुत्र तामली भी विनयवादी था। वह जीवनपर्यंत छठ छठ तप करता था और सूर्याभिमुख होकर आतापना लेता था । काष्ठ का पात्र लेकर भिक्षा के लिए जाता और भिक्षा में केवल चावल ग्रहण करता था । वह जिसे भी देखता उसे प्रणाम करता था। पूरण तापस भी विनयवादी ही था । बौद्ध साहित्य में पूरण कश्यप को महावीर कालीन छह धर्मनायकों में एक माना २०१ है । पैर हमारी दृष्टि से वह पूर्ण काश्यप से पृथक होना चाहिये। क्योंकि बौद्ध साहित्य का पूर्ण कश्यप अक्रिशवादी भी था और वह नम था । और उसके अस्सी हजार अनुयायी थे२०२ ।
(११) विरुद्ध - परलोक और अन्य सभी मत-मतान्तरों का विरोध वादियों को 'विरुद्ध' कहा है क्योंकि उनका मन्तव्य अन्य मतवादियों से चौरासी भेद भी मिलते है २०४ । अज्ञानवादी मोक्ष प्राप्ति के लिए ज्ञान बौद्ध ग्रन्थों में 'पकुध कच्चायण' को अक्रियावादी कहा है २०५ ।
करने वाला । अक्रियाविरुद्ध २०३ था । इनके को निष्फल मानते थे ।
१९३. आचारांग चूर्णि २-२ - पृ. ३४६ ॥ १९४. गावी हि समं निग्गमपवेससयणासणाइ पकरेंति । भुति जहा गावी तिरिक्खवासं विहविन्ता । -- औपपातिक टीका पृ. १६९॥ १९५. औपपातिक*३८, पृ. १६९॥ १९६. अंगुत्तरनिकाय ३, पृ. १७६ ॥ १९७ सूत्रकृतांग १ -१२ - २ और उसकी टीका || १९८. उत्तराध्ययन टीका १८ पृ. २३० ॥ १९९ सूत्रकृतांग टीका -- १-१२ पृ. २०९ (अ) ।। २००. आवश्यक निर्मुक्ति ४९४ (ख) आवश्यक चूर्णि पृ. २९८, (ग) भगवती सूत्र शतक, १४ तृतीय खण्ड, पृ. ३७३-७४ ॥ २०१. व्याख्याप्रज्ञप्ति ३ - १॥ २०२. वही. ३-२ ॥ २०३. दीघनिकाय --- सामञ्ञफल सुत्त, २ ॥ २०४. बौद्ध पर्व (मराठी) प्र. १०, पृ. १२७ ॥ २०५ (क) अनुयोगद्वार सूत्र २० (ख) औपपातिक सूत्र ३७, पृ. ६९ (ग) ज्ञाताधर्मकथा टीका, १५. पृ. १९४ ॥
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