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एक अनुशीलन
१०७ में यदि वह साधना से न्युत हो जाता है तो उसकी दुर्गति हो जाती है और जिसका जीवन पूर्ण साधना में गुजरता है वह स्वल्प काल में भी सद्गति को वरण कर लेता है।
इस तरह प्रथम श्रुतस्कंध में विविध दृष्टान्तों के द्वारा अहिंसा, अस्वाद, श्रद्धा, इन्द्रियविजय प्रभृति आध्यात्मिक तत्वों का बहुत ही संक्षेप व सरल शैली में वर्णन किया गया है। कथावस्तु की वर्णनशैली अत्यन्त चित्ताकर्षक है। ऐतिहासिक दृष्टि से भी जो शोधार्थी शोध करना चाहते हैं, उनके लिए पर्याप्त सामग्री है। उस समय की पारेस्थिति, रीति-रिवाज, खान-पान सामाजिक स्थितियाँ और मान्यताओं का विशद विश्लेषण भी इस आगम में प्राप्त होता है। शैली की दृष्टि से धर्मनायकों का यह आदर्श रहा है। भाषा और रचना शैली की अपेक्षा जीवन निर्माण की शैली का प्रयोग करने में वे दक्ष रहे हैं। आधुनिक कलारसिक आगम की धर्मकथाओं में कला को देखना अधिक पसन्द करते हैं। आधुनिक कहानियों के तत्त्वों से और शैली से उनकी समता करना चाहते हैं। पर वे भूल जाते हैं कि ये कथाएँ बोधकथाएँ हैं। इनमें जीवननिर्माग की प्रेरणा है, न कि कला के लिए कलाप्रदर्शन। यदि वे बोध प्राप्त करने की दृष्टि से इन कथाओं का पारायण करेंगे तो उन्हें इनमें बहुत कुछ मिल सकेगा।
___ हम पूर्व ही लिख चुके हैं कि ज्ञातासूत्र के द्वितीय श्रुतस्कंध में धर्मकथाएँ हैं। इसमें चमरेन्द्र, बलीन्द्र, धरणेन्द्र, पिशाचेन्द्र, महाकालेन्द्र, शकेन्द्र, ईशानेन्द्र आदि की अग्रमहिषियों के रूप में उत्पन्न होनेवाली साध्वियों को कथाएँ हैं। इनमें से अधिकांश साध्वियाँ भगवान् पार्श्वनाथ की परम्परा में दीक्षित हुई थीं। ऐतिहासिक दृष्टि से इन साध्वियों का अत्यधिक महत्त्व है। इस श्रुतस्कंध में पार्श्वकालीन श्रमणियो के नाम उपलब्ध हैं। वे इस प्रकार हैं-(१) काली (२) राजी (३) रजनी (४) विद्युत (५) मेघा, ये आमलकप्पा नगर की थीं। और इन्होंने आर्या पुष्पचूला के पास दीक्षा ग्रहण की थी। (६) शुंभा (७) निशुंभा (८) रंभा (९) निरंभा और (१०) मदना ये श्रावस्ती की थीं
और पार्श्वनाथ के उपदेश से दीक्षा ग्रहण की थी। (११) इला (१२) सतेरा (१३) सौदामिनी (१४) इन्द्रा (१५) घना और (१६) विद्युता ये वाराणसी की थीं और श्रेष्ठियों की लड़कियाँ थीं। इन्होंने भी पार्श्वनाथ के उपदेश से दीक्षा ग्रहण की। (१७) रुचा (१८) सुरुचा (१९) रुचांशा (२०) रुचकावती (२१) रुचकान्ता (२२) रुचप्रभा ये चम्पा नगरी की थीं। इन्होंने भी पार्श्वनाथ की परम्परा में दीक्षा ग्रहण की थी। (२३) कमला (२४) कमलप्रभा (२५) उत्पला (२६) सुदर्शना (२७) रूपवती (२८) बहुरूपा (२९) सुरूपा (३०) सुभगा (३१) पूर्णा (३२) बहुपुत्रिका (३३) उत्तमा (३४) भारिका (३५) पद्मा (३६) वसुमती (३७) कनका (३८) कनकप्रभा (३९) अवतंसा (४०) केतुमती (४१) वज्रसेना (४२) रतिप्रिया (४३) रोहिणी (४४) नौमिका (४५) ह्री (४६) पुष्पाती (४७) भुजगा (४८) भुजंगवती (४९) माकच्छा (५०) अपराजिता (५१) सुघोषा (५२) विमला (५३) सुस्वरा (५४) सरस्वती ये बत्तीस कुमारिकाएं नागपुर की थीं। भगवान् पार्श्वनाथ के उपदेश से साधना के पथ पर अपने कदम बढ़ाये थे।
एक बार भगवान् पार्श्व साकेत नगरी में पधारे। वहाँ बत्तीस कुमारिकाओं ने दीक्षा ग्रहण की। भगवान् पार्श्व अरुक्खुरी नगरी में पधारे। उस समय (८७) सूर्यप्रभा (८८) आतपा (८९) अर्चिमाली (९०) प्रभंकरा आदि ने त्यागमार्ग को ग्रहण किया। एक बार भगवान् पार्श्व मथुरा पधारे। उस समय (९१) चन्द्रप्रभा (९२) दोष्णामा (९३) अर्चिमाली और (९४) प्रभंकरा ने दीक्षा ग्रहण की। भगवान श्रावस्ती पधारे जहाँ पर (९५) ग्गा और (९६) शिवा ने संयम मार्ग की ओर कदम बढ़ाया। भगवान पार्श्व हस्तनापुर पधारे। उस समय (९७) सती और (९८) अंजू ने श्रमणधर्म स्वीकार
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