Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra
Author(s): Jambuvijay, Dharmachandvijay
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay

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Page 610
________________ प्रथमं परिशिष्टम् १४६ २३३ परम विशिष्टशब्दाः पृष्ठाका. । विशिष्टशब्दाः पृष्ठाङ्काः पमयवण २३६, २५० परचक्करायाभिरोहिया १९४ पमाण ७, १३२, १७९ परदारप्पसंगी ३३६ पमाणभूत ७, १३२, १४० परपरिवाय पमाणातिकंत १२५ परब्भमाण ८८, ९१, ३३८ पमादेयन्व ५५, ५६, ११३ परब्भाहय ६१, ६८, ३४४ पमुइयपक्कीलिय परभव पमुइयपक्कीलियाभिगमं पमुंचमाण परममहन्मयाभिया १९४ पमुंचमाणी २०५ परमरम्म १३ पमुतियपक्कीलिया १०७ परमसुइभूत ८९, ३४१ पमोक्खमाइक्खित्तए १७१ परमसुइभूय ३६, ९५, १५०, २२०, २५७ पम्हलसुकुमालगंधकासाइलूहियंगे परमसुहदरिसणिज १४६ पम्हलसुकुमाला २७३ परमसुहफास २८९ पम्हलसूमाला ५१,८२ परमसोमणंसिया पम्हु परमाउ ६२, ६९ पम्हुइदिसाभाए ३४३ परम्मुह १७७, २४६ पय ५४, ३५६ परम्मुही पयइसुकुमालय परलोग १०५ पयंगो परलोगनिप्पिवास पयक्खिणाणुकूलेणं ३२२ परलोय ९२, १००, २५४, ३५४ पयच्छामि परवसा २७८ पयच्छामो परवसा ३६१ पयण परसुणियत्त ८५, ३४४ पयत्त ७२, ११३, १६७, १९९, २०४, परसुनियत्तव ४४ २२६, २९५, ३१३, ३२८ परहुतसुरत्तलोयण १४ पयमगं परहुयरुयरिभितसंकुल २२ पयरगलंबेत परामुसति २८७, ३०८, ३१२, ३१३, पयाएजासि ३४३ पयामि ८०,८१, ८२ परासर पयाया ३४, २४०, ३१७ परिकहेंति पयायामि २३८, २३९ परिकहेति १८९ पयाहिण परिकिण्णा पयाहिसि परिकुविया १७६, २०१ ७९, २१८ परिक्खणट्टयाए १३३ परंगिजमाण परिक्खणहाए १३६ परकमियन्व परिक्खित्ता १७७, २८६ परकम्मे ३१० । परिक्खेव १२५ ४८ पर १९५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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