Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra
Author(s): Jambuvijay, Dharmachandvijay
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay

Previous | Next

Page 632
________________ प्रथमं परिशिष्टम् ४६७ मेज मेढीभूए ३६६ मद मेय मेक रंभा मेह Ve विशिष्टशब्दाः पृष्ठाकाः । विशिष्टशब्दाः पृष्ठाकाः १५२, १६१, १६२, १९२, याणसि ३०४ २५१ रइप्पिया मेढी ७, १३२, १७९ रइयए ४८ रहसेणा मेढीभूत १३२ २७६ २४८ रएह १६३ २१५ रंधतियं १३८ • ३६४ मेरुप्पभ ६३, ६४ रक्खिया १३२, १३४, १३९ २०,३८, ४३, ४९, ५०, ५१, रज १२३, १२७, १४१, १४२, ५३, ५४, ५५, ५६, ५७, ५८, १७२, १८०, १८९, २२३, ५९,६१, ६२, ६३, ६४, ६५, २३८, २३९, २४०, २४४, ६७,६८,६९, ७०, ७१, ७३, २४५, २९४, ३१७, ३१८, ७४, ७५, ७६, ११०, ११२, ३४८, ३५३ १२४, ३५६, ३६३ रजति २५४, ३२९, ३५४ मेहकुमार रजधुरचिंतए मेहषणसन्निगास ७३, ७४ रजधुरा मेहरसियहहतुट्ठचिडियहरिसवस रजधुराचिंता पमुक्तकंठकेकारवं २१ रजलाभ १२, १९ मेहल २०५ रजवती .. १२, १९ मेहसिरी रजसुका १५१, १६३ मेहाविण १७८ मेहावी रजुधुराचिंतए मेहुण ७४, ११६ २४७, २४८ मोएंति ७, २३८, २४४, ३५३ मोक्ख ५४ रणो ७,५३, ५७, ६९, १२६, १४१, मोडियझयदंडा १४६, १५१, १६४, १६९, मोत्तिय १७१, १७२, १८३, २१७, २१९, २२०, २२१, .२८०, मोत्तगं २८१, २८६, २९७, २९८, मोयगेणं ३०२,३०३, ३११,३१६, ३५६ मोयावेइ २५५ १९९, मोयावेति ६३, ३३२ मोल्लगरुए रतंसुयसंवुए १० मोहणघर , १४८ रत्तगंडमंसुयाइ १९६ मोहणसील रत्तच्छे १९९ मोहियाणि रत्तपड २५२ २४४ २१५ स्ट्र मोतुं ४७ ७०, २९७ रति ८९,२५२ RATN २०४ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 630 631 632 633 634 635 636 637 638 639 640 641 642 643 644 645 646 647 648 649 650 651 652 653 654 655 656 657 658 659 660 661 662 663 664 665 666 667 668 669 670 671 672 673 674 675 676 677 678 679 680 681 682 683 684 685 686 687 688 689 690 691 692 693 694 695 696 697 698 699 700 701 702 703 704 705 706 707 708 709 710 711 712 713 714 715 716 717 718 719 720 721 722 723 724 725 726 727 728 729 730 731 732 733 734 735 736 737