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एक अनुशीलन
१०५ सोलहवें अध्ययन में पाण्डवपत्नी द्रौपदी को पद्मनाभ अपहरण कर हस्तिनापुर नगर से अमरकंकाले आता है। हस्तिनापुर कुरुजांगल जनपद की राजधानी थी। हस्तिनापुर के अधिपती श्रेयांस ने ऋषभदेव को१५ सर्वप्रथम आहार दान दिया था। महाभारत के२१६ अनुसार सुहोत्र के पुत्र राजा हस्ती ने इस नगर बसाया था। अतः उसका नाम हस्तिनापुर पड़ा। महाभारत काल में वह कौरवों की राजधानी थी।१७ अभिमन्यु के पुत्र परीक्षित को वहाँ का राजा बनाया२१८ था। विविध तीर्थ कल्प के अभिमतानुसार ऋषभदेव के पुत्र कुरु थे। उनके एक पुत्र हस्ती थे, उन्होंने हस्तिनापुर बसाया२१९ था। विष्णुकुमार मुनि ने बलि द्वारा हवन किये जाने वाले ७०० मुनियों की रक्षा की थी। सनत्कुमार, महापद्म, सुभौम परशुराम का जन्म इसी नगर में हुआ था। इसी नगर में कार्तिक श्रेष्ठी ने मुनिसुव्रत स्वामी के पास संयम लिया था और सौधर्मेन्द्र पद प्राप्त किया२२० था। शांतिनाथ, कुंथुनाथ और अरनाथ इन तीनों तीर्थंकरों और चक्रवर्तियों की जन्मभूमि होने का गौरव भी इसी नगर को है। पौराणिक दृष्टि से इस नगर का अत्यधिक महत्त्व रहा है। वसुदेव हिण्डी में इसे ब्रह्मस्थल कहा२२१ है। इसके अपर नाम गजपुर और नागपुर भी थे। वर्तमान में हस्तिनापुर गंगा के दक्षिण तट पर मेरठ से २२ मील दूर उत्तर-पश्चिम कोण में तथा दिल्ली से छप्पन मील दूर दक्षिण-पूर्व में विद्यमान है। पाली साहित्य में इसका नाम हस्तीपुर या हस्तिनीपुर आता है। जैनाचार्य श्री नंदिषेण रचित 'अजितशांति' नामक स्तवन में इस नगरी के लिए गयपुर, गजपुर, नागाहय, नागसाहय, नागपुर, हस्थिणउर, हरियणाउर, हत्थिगापुर, हस्तिनीपुर आदि पर्यायवाचक शब्दों का उल्लेख किया गया है। इसी हस्तिनापुर नगर से द्रौपदी को धातकीखंड क्षेत्र की अमरकंका नगरी में ले जाया जाता है। श्रीकृष्ण पांडवों के साथ वहाँ पर पहुँचते हैं और पद्मनाभ को पराजित कर द्रौपदी को, पुनः ले आते हैं।
प्रस्तुत अध्ययन में गंगा महानदी को नौका के द्वारा पार करने का उल्लेख है। गंगा भारत की सब से बड़ी नदी है। उसे देवताओं की नदी माना है। २२३ जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति के अनुसार वह देवाधिष्ठित२२४ है। आगमों में अनेक स्थलों पर गंगा को महानदी माना है ।२२५ स्थानांग आदि में गंगा को महार्णव कहा है ।२२६ आचार्य अभयदेव ने महार्णव शब्द को उपमावाचक माना है। २२७ विशाल जलराशि के कारण वह समुद्र के समान है। पुराणकार ने गंगा को समुद्ररूपिणी कहा२२८ है। वैदिक दृष्टि से गंगा में नौ सौ नदियाँ मिलती हैं२२१ और जैन दृष्टि से चौहद हजार२३० जिनमें यमुना, सरयू, कोशी, मही, गंडकी, ब्रह्मपुत्र आदि बड़ी नदियाँ भी संमिलित हैं। प्राचीन युग में गंगा अत्यन्त विशाल थी। समुद्र
२१५. ऋषभदेव एक परिशीलन, पृ. १६९ (ख) आवश्यक नियुक्ति. (गा०) ३४५॥ २१६. महाभारत. आदि पर्व ९५-३४-२४३॥ २१७, महाभारत, आदिपर्व १००.१२.२४४॥ २.८. महाभारत, प्रस्थान पर्व १-८-२४५॥ २१९. विविध तीर्थकरूप में हस्तिनापुर कल्प, पृ. २७॥ २२०. जयवाणी पृ. २८३.९४॥ २२१. वसुदेवहिण्डी पृ. १६५॥ २२२. तत्त्वार्थ सूत्र ७.१३. २२३. (क) स्कंदपुराण, काशीखण्ड २९ अध्याय, (ख) अमरकोष १/१०/३१॥ २२४. जम्बूद्वीप. प्रज्ञप्ति ४ वक्षस्कार ॥ २२५. (क) स्थानांग ५/३ (ख) समवायांग २४ वां समवाय (ग) जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति-४ वक्षस्कार (घ) निशीथ सूत्र १२/४२ (ङ) बृहत्कल्प सूत्र ४/३२ ॥ २२६. (क) स्थानांग ५/२१ (ख) निशीथ सूत्र १२/४२. (ङ) बृहत्कल्प सूत्र ८॥३२॥ २२६. (क) स्थानांग ५।२।१. (ख) निशीथ, १२१४२॥ (ग) बृहत्कल्प ४/३२॥ २२७. (क) स्थानांग वृत्ति ५/२/१. (ख) बृहत्कल्पभाष्य टीका ५६/१६॥ २२८. स्कंदपुराण काशीखंड २९ अ०॥ २२९. हारीत १/७॥ २३०. जम्बू. ४ वक्षस्कार।
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