________________
एक अनुशीलन कनक थे। उनके नाम से कनकपुर बसा हुआ है। मिथिला से ही जैन श्रमणों की शाखा मैथिलिया'५६ निकली है। यहाँ पर भगवान महावीर ने छह वर्षावास १६७ संपन्न किये थे। आठवें गणधर अकंपित की यह जन्मस्थली है।५० यहीं पर प्रत्येक बुद्ध नमि को कंकण की ध्वनि को श्रवण कर वैराग्य उत्पन्न हुआ था। १६९
इन्द्र ने नमि राजर्षि को कहा-मिथिला जल रही है और आप साधना की ओर अपने मुस्तैदी कदम उठा रहे है, तब नाम ने इन्द्र से कहा-इन्द्र 'मिहिलाए डझमाणीए ण मे डझाइ किंचण' (उत्तरा ९/१४) उत्तराध्ययन की भांति महाभारत में भी जनक के सम्बन्ध में एक कथा आती है। प्रवल अग्निदाह के कारण भस्मीभूत होते हुए मिथिला को देखकर अनासक्ति से जनक ने कहाइस जलती हुई नगरी में मेरा कुछ भी नहीं जल रहा है 'मिथिलायाम् प्रदीप्तायाम् न मे दह्यते किञ्चन ।' (महाभारत १२, १७, १८-१९) महाजनक जातक में भी इसी प्रकार का वर्णन मिलता है। 'मिथिलायाम् दह्यमानायां न मे किञ्चि अदह्यथ (जातक ६, ५४-५५) भगवान् महावीर और बुद्ध के समय मिथिला में गणराज्य था।
चतुर्थ निह्नव ने सामुच्छेदिक वाद का यहाँ से प्रवर्तन किया था।१७० दशपूर्वधारी आर्य महागिरि का यह मुख्य रूप से विहारस्थल था। बाणगंगा और गंडक ये दो नदियां प्रस्तुत नगर को घेरकर बहती हैं।७२ मिथिला एक समृद्ध राष्ट्र था। जिनप्रभ सूरि के समय वहाँ पर प्रत्येक घर कदलीवन से शोभित था। खीर वहाँ का प्रिय भोजन था। स्थान-स्थान पर वापी, कूप और तालाब थे। वहाँ की जनता धर्मनिष्ठ और धर्मशास्त्र ज्ञाता थी।७३ जातक अनुसार मिथिला के चार प्रवेशद्वारों में प्रत्येक स्थान पर बाजार थे। (जातक VI पृ. ३३०) नगर वास्तुकला की दृष्टि से अत्यंत कलात्मक था। वह के निवासी बहुमूल्य वस्त्र धारण करते थे। (जातक ४६ महाभारत २०६) रामायण के अनुसार यह एक मनोग्म व स्वच्छ नगर था। सुन्दर सड़कें थीं। व्यापार का बड़ा केन्द्र था। (परमत्थदीप की 'आन द थेरगाथा' सिंहली संस्करण ॥ २७७-८) यह नगर विज्ञों का केन्द्र था। (आश्वलायन श्रौतसूत्र x ३, १४) अनेक तार्किक यहाँ पर हुए हैं जिन्होंने तर्कशास्त्र को नई दिशा दी। महान् तार्किक गणेश मण्डनमिश्र और वैष्णव कवि विद्यापति भी यहीं के थे। विदेह राज्य की सीमा उत्तर में हिमालय, दक्षिण में गंगा, पश्चिम में गंडकी और पूर्व में मही नदी तक थी। वर्तमान में नेपाल की सीमा के अन्तर्गत यहाँ पर मुजफ्फरपुर और दरभंगा के जिले हैं। वहाँ छोटे नगर जनकपुर
को प्राचीन मिथिला कहते हैं। कितने ही विद्वान् सीतामढी के सन्निकट 'मुहिला १७४ नामक • स्थान को प्राचीन मिथिला का अपभ्रंश मानते हैं। जैन आगमों में दस राजधानियों में मिथिला मी एक है। १७५
नौवें अध्ययन में माकन्दीपुत्र जिनपालित और जिनरक्षित का वर्णन है। प्रस्तुत कथानक से मिलता जुलता कथानक बौद्ध साहित्य के बलाहस जातक में हैं और दिव्यावदान में भी मिलता है। तुलनात्मक अध्ययन करने से स्पष्ट होता है कि कथानकों में परम्परा के भेद से कुछ अन्तर अवश्य आता है पर कथानक के मूल तत्त्व प्रायः काफी मिलते जुलते हैं।
१६६. वही. पृ० ३२॥ १६७. कल्पसूत्र २१३, पृ० २९८ ।। १६८. आवश्यकनियुक्ति गा. ६४४॥ १६९, उत्तराध्ययन सुखवोधा, पत्र १३६-१४३॥ १७०. आवश्यकभाष्य गा. १३१॥ १७१. आवश्यकनियुक्ति गा. ७८२॥ १७२. विविध तीर्थकल्प पृ. ३२ ।। १७३. वही० पृ. २२॥ १७४. The Ancient Geography of India, पृ. ७१८॥ १७५. स्थानांग १०/११७॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org