________________
एक अनुशीलन (२२) गाई-प्राकृत भाषा में गाथा निर्माण की कला (२३) सिलोग-श्लोक बनाने की कला (२४) गंधजुत्ति-सुगंधित पदार्थ बनाने की कला (२५) मधुसित्थं-मधुरादि छह रस संबंधी कला (२६) आभरण विहिं-अलंकार निर्माण व धारण की कला (२७) तरुणीपडिकम्म-स्त्री को शिक्षा देने की कला (२८) इत्थीलक्खणं-स्त्री के लक्षण जानने की कला (२९) पुरिसलक्खणं-पुरुष के लक्षण जानने की कला (३०) हयलक्खणं-घोडे के लक्षण जानने की कला (३१) गयलक्खणं-हस्ती के लक्षण जानने की कला (३२) गोलक्खणं-गाय के लक्षण जानने की कला (३३) कुक्कुडलक्खणं-कुक्कुट के लक्षण जानने की कला (३४) मिंढियलक्खणं-मेंढे के लक्षण जानने की कला (३५) चक्कलक्खणं-चक्र के लक्षण जानने की कला (३६) छत्तलक्षणं--छत्र लक्षण जानने की कला (३७) दण्डलक्खणं-दण्ड लक्षण जानने की कला (३८) असिलक्खणं-तलवार के लक्षण जानने की कला (३९) मणिलक्खणं-मणि के लक्षण जानने की कला (४०) कागणिलक्खणं-काकिणी-चक्रवर्ती के रएन विशेष के लक्षण को जानने की कला (४१) चम्मलक्खणं-चर्म लक्षण जानने की कला (४२) चंदलक्खणं-चन्द्र लक्षण जानने की कला (४३) सूरचरियं-सूर्य आदि की गति जानने की कला (०४) राहुचरियं-राहु आदि की गति जानने की कला (४५) गहचरियं-ग्रहों की गति जानने की कला (४६) सोभागकरं-सौभाग्य का ज्ञान (४७) दोभागकरं-दुर्भाग्य का ज्ञान (४८) विजागयं-रोहिणी, प्रज्ञप्ति आदि विद्या सम्बन्धी ज्ञान (४९) मंतगयं-मन्त्रसाधना आदि का ज्ञान (५०) रहस्सगयं-गुप्त वस्तु को जानने का ज्ञान (५१) सभासं-प्रत्येक वस्तु के वृत्त का ज्ञान (५२) चार-सैन्य का प्रमाण आदि जानना (५३) पडिचार-सेना को रणक्षेत्र में उतारने की कला (५४) वूह-व्यूह रचनेकी कला (५५) पडिवूह–प्रतिव्यूह रचने की कला (५६) खंधावारमाणं-सेना के पडाव का प्रमाण जानना
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org