Book Title: Agam 05 Bhagwati Sutra Part 01 Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar
View full book text
________________
आगम सूत्र ५, अंगसूत्र-५, 'भगवती/व्याख्याप्रज्ञप्ति-1'
शतक/शतकशतक/उद्देशक/ सूत्रांक सूत्र-५७
भगवन् ! पृथ्वीकायिक जीवों के कितने लाख आवास कहे गए हैं ? गौतम ! पृथ्वीकायिक जीवों के असंख्यात लाख आवास कहे गए हैं । इसी प्रकार यावत् ज्योतिष्क देवों तक के असंख्यात लाख विमानावास कहे गए हैं। भगवन् ! सौधर्मकल्प में कितने विमानावास हैं ? गौतम ! बत्तीस लाख विमानावास कहे हैं। सूत्र-५८-६०
इस प्रकार क्रमशः बत्तीस लाख, अट्ठाईस लाख, बारह लाख, आठ लाख, चार लाख, पचास हजार तथा चालीस हजार, विमानावास जानना चाहिए । सहस्रार कल्प में छ हजार विमानावास हैं।
आणत और प्राणत कल्प में चार सौ, आरण और अच्युत में तीन सौ, इस तरह चारों में मिलकर सात सौ विमान हैं।
अधस्तन (नीचले) ग्रैवेयक त्रिक में एक सौ ग्यारह, मध्यम (बीच के) ग्रैवेयक त्रिक में एक सौ सात और ऊपर के ग्रैवेयक त्रिक में एक सौ विमानावास हैं। अनुत्तर विमानावास पाँच ही हैं। सूत्र - ६१
पृथ्वी (नरकभूमि) आदि जीवावासों में १. स्थिति, २. अवगाहना, ३. शरीर, ४. संहनन, ५. संस्थान, ६. लेश्या, ७. दृष्टि,८. ज्ञान, ९. योग और १०. उपयोग इन दस स्थानों पर विचार करना है। सूत्र-६२
भगवन् ! इस रत्नप्रभा पृथ्वी के तीस लाख नारकावासों में से एक-एक नारकावास में रहने वाले नारक जीवों के कितने स्थिति-स्थान कहे गए हैं ? गौतम ! उनके असंख्य स्थान हैं । वे इस प्रकार हैं-जघन्य स्थिति दस हजार वर्ष की है, वह एक समय अधिक, दो समय अधिक-इस प्रकार यावत् जघन्य स्थिति असंख्यात समय अधिक है, तथा उसके योग्य उत्कृष्ट स्थिति भी।
भगवन् ! इस रत्नप्रभा पृथ्वी के तीस लाख नारकावासों में से एक-एक नारकावास में कम से कम स्थिति में वर्तमान नारक क्या क्रोधोपयुक्त हैं, मानोपयुक्त हैं, मायोपयुक्त हैं अथवा लोभोपयुक्त हैं ? गौतम ! वे सभी क्रोधोपयुक्त होते हैं १, अथवा बहुत से नारक क्रोधोपयुक्त और एक नारक मानोपयुक्त होता है २, अथवा बहुत से क्रोधोपयुक्त और बहुत से मानोपयुक्त होते हैं ३, अथवा बहुत से क्रोधोपयुक्त और एक मानोपयुक्त होता है ४, अथवा बहुत-से क्रोधोपयुक्त और बहुत-से मायोपयुक्त होते हैं ५, अथवा बहुत-से क्रोधोपयुक्त और एक लोभोपयुक्त होता है ६, अथवा बहुत-से क्रोधोपयुक्त और बहुत-से लोभोपयुक्त होते हैं ७ । अथवा बहुत से क्रोधोपयुक्त, एक मानोपयुक्त और एक मायोपयुक्त होता है १, बहुत-से क्रोधोपयुक्त, एक मानोपयुक्त और बहुत-से मायोपयुक्त होते हैं २, बहुत-से क्रोधोपयुक्त, बहुत-से मानोपयुक्त और एक मायोपयुक्त होता है ३, बहुत-से क्रोधोपयुक्त, बहुत मानोपयुक्त और बहुत मायोपयुक्त होते हैं ४, इसी तरह क्रोध, मान और लोभ के चार भंग क्रोध, माया और लोभ के भी चार भंग कहने चाहिए । फिर मान, माया और लोभ के साथ क्रोध को जोड़ने से चतुष्क-संयोगी आठ भंग कहने चाहिए । इसी तरह क्रोध को नहीं छोड़ते हुए कुल २७ भंग समझ लेने चाहिए।
इस रत्नप्रभा पृथ्वी के तीस लाख नारकावासों में से एक-एक नारकावास में एक समय अधिक जघन्य स्थिति में वर्तमान नारक क्या क्रोधोपयुक्त होते हैं, मानोपयुक्त होते हैं, मायोपयुक्त होते हैं अथवा लोभोपयुक्त होते हैं ? गौतम! उनमें से कोई-कोई क्रोधोपयुक्त, कोई मानोपयुक्त, कोई मायोपयुक्त और कोई लोभोपयुक्त होता है । अथवा बहुत-से क्रोधोपयुक्त, मानोपयुक्त, मायोपयुक्त और लोभोपयुक्त होते हैं । अथवा कोई-कोई क्रोधोपयुक्त और मानोपयुक्त होता है, या कोई-कोई क्रोधोपयुक्त और बहुत-से मानोपयुक्त होते हैं । इत्यादि प्रकार से अस्सी भंग समझने चाहिए । इसी प्रकार यावत् दो समय अधिक जघन्य स्थिति से लेकर संख्येय समयाधिक जघन्य स्थिति वाले नैरयिकों के लिए समझना । असंख्येय समयाधिक स्थिति वालों में तथा उसके योग्य उत्कृष्ट स्थिति वाले नारकों में सत्ताईस भंग कहने चाहिए।
मुनि दीपरत्नसागर कृत् "(भगवती) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
Page 21