Book Title: Agam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 21
________________ समवायाङ्गसूत्रे समवायाङ्गसूत्रस्य, वृत्तिः सरलभाषया । घासीलालेन मुनिना, क्रियते भावबोधिनी ॥ ३॥ स्थानाख्यतृतीयाङ्गानन्तरं समवायनामकमिदं चतुर्थमङ्गं क्रमप्राप्तमेवास्ति। अथ कः समवायाङ्गशब्दार्थः ? उच्यते-सम्सम्यक, अवस्वरूपमर्यादया, अयः= अयन-परिच्छेदः संख्यानं जीवाजीवादिपदार्थसमुदायस्य यत्र स समवायः। यद्वा -समवयन्ति संमिलन्ति जीवादयो भावा विषयतया-प्रतिपाद्यतया यत्र स समवाय इति । समवाय एवाङ्गं-समवायाम्। इदं हि प्रवचनरूपस्य पुरुषस्य वामजवास्थानीयं भवति । प्रवचनाङ्गानां सविस्तरवर्णनमुपासकदशाङ्गसूत्रव्याख्यायां मैं मुमि घासीलाल समवायांग सूत्र के ऊपर सरल भाषा में भावबोधिनी नामकी वृत्ति रचता हूं ॥३॥ स्थानाङ्ग नामक तृतीय अंग के अनन्तर समवायांग नाम का यह चौथा अंग क्रमप्राप्त है। इस समवायांग शब्द का वाच्यार्थ क्या है ? इस प्रश्न का उत्तर इस प्रकार है समवाय पद में सम्' 'अव' 'श्रय' ऐसे ये तीन शब्द हैं सो 'सम्' को अर्थ सम्यक 'अव' का अर्थ स्वरूपमर्यादा और 'अय' का अर्थ परिच्छेद-संख्या है । इससे यह तात्पर्य निकलता है कि इस शास्त्र में जीव अजीव आदि पदार्थ समूह की अच्छी तरह से उन के स्वरूप प्रदर्शन पूर्वक संख्या-गणना की गई है। अथवा जीवादिक पदार्थो का इसमें प्रतिपादन किया गया है । इसलिये प्रतिपाद्यरूप से वे सब इसमें एकत्रित हुए हैं। यह समवायरूप अंग प्रवचनरूप पुरुष को वामजघा के स्थानापन्न है। प्रवचनरूप पुरुष के समस्त अंगों का सविस्तरवर्णन उपासकदशांग सूत्र की अगारधर्म संजीवनी टीका मुनि घासlana " समवायांग सूत्र" 8५२ स२ लापामा “मामायिनी" નામની વૃત્તિ-ટીકા રચું છું ? અનુક્રમે લેતા, સ્થાનાંગ નામના ત્રીજા અંગ પછી સમવાયાંગ નામનું આ ચોથું અંગ આવે છે. આ સમવાયાંગ શબ્દને વાગ્યાથી શે છે? આ પ્રશ્નનો જવાબ આ પ્રમાણ છે– समवाय पहमा 'सम' 'अव भने 'अय' येत्रण शो छ. 'सम्' ने। मथ सम्यक्, 'अव ना मथ २१३५माह। भने 'अय' नो अर्थ पश्छेि -सध्या छ. तेने ભાવાર્થ એ છે કે આ શાસ્ત્રમાં જીવ, અજીવ આદિ પદાર્થ સમૂહની સારી રીતે, તેમના સ્વરૂપ પ્રદર્શન પૂર્વક સંખ્યા-ગણના કરવામાં આવેલ છે. અથવા આ શાસ્ત્રમાં છવાદિક પદાર્થનું પ્રતિપાદન કરાયું છે. તેથી તે સૌ પ્રતિપાદ્ય રૂપે આમાં એકત્રિત થયાં છે. આ સમવાયરૂપ અંગ પ્રવચન રૂપ પુરુષની ડાબી જંઘાના જેવું છે. પ્રવચન રૂપ પુરુષનાં સમસ્ત અંગેનું સવિસ્તરવર્ણન ઉપાસક દશાંગ સૂત્રની અગારધર્મ શ્રી સમવાયાંગ સૂત્ર

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