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द्वितीय अध्ययन
कर्मनाश
श्रीसुधर्मास्वामी फिर कहने लगे
मनुष्य-जन्म मिलना दुर्लभ है। एक बार बीती हुई पल फिर वापिस नहीं आती । मृत्यु तो वाल, यौवन या जरा किसी भी अवस्था में आ सकती है; अतएव तुम सब समय रहते शीघ्र सच्चा ज्ञान प्राप्त करने का प्रयत्न करो।
मनुष्य अपने जीवन में कामभोग तथा स्त्रीपुत्रादि के स्नेह से घिरे रहते हैं और अपने तथा अपने सम्बन्धियों के लिये अनेक अच्छे-बुरे कर्म करते रहते हैं। परन्तु देव-गांधर्व तक को, आयुष्य पूरा होने पर, न चाहते हुए भी, अपने प्रिय संयोगों और सम्बन्धों को छोडकर अवश्य ही जाना पडता है; उस समय राज्य-वैभव, धनसंपत्ति, शास्त्रज्ञान, धर्म-ज्ञान, ब्राह्मणत्व या भिक्षुत्व किसी को अपने पाप-कर्म के फल से बचा नहीं सकते । इसलिये, समय है तबतक, इन क्षुद्र तथा दु.खरूप कामभोगों से निवृत्त होकर, सच्चा ज्ञान प्राप्त करने का प्रयत्न करो, जिससे कर्म तथा उनके कारणों का नाश करके तुम इस दुःख के चक्र से मुक्त हो सको। [१-७ ] इस अन्त होने वाले जीवन में मूर्ख मनुष्य ही संसार के काम-भोगों में मुर्छित रही हैं । समझदार मनुष्य को तो शीघ्र ही इस से विरत होकर,