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सूत्रकृत्तांग सूत्र - rmirmirrrrrrrrr
कितने ही वनस्पतिजीव पृथ्वी के बदले पानी में वृक्ष, वृक्षवल्ली, तृण, औषधि और हरियाली के रूप में उत्पन्न होते हैं, उनमें ले प्रत्येक के लिये ऊपर के चारों प्रकार समझे जावे, परन्तु उद्ग, अवग.. पणग, शेवाल, कलम्बुग, हट, कसेरा, कन्छभाणिय उत्पल, पद्म, कुमुद्र, नलिन, सुभग, सौंगन्धिय, पुंडरीक, महापुंडरीक, शतपत्र, सहस्रपत्र, कहार, कोकनद्र, अरविंद, तामरस, बीस, मृणाल, पुष्कर, पुष्कर-लच्छी और भग आदि पानी में उत्पन्न होने वाली वनस्पतियाँ ऐसी हैं कि जिनके लिये शेप तीन प्रकार घटाये नहीं जा सकते।
और भी कितने ही जीव इन पृथ्वी और पानी में उत्पन्न होने वाली वनस्पतियों में सं (जंगम) प्राण के रूप में रहते हैं और . उनके रस. श्रादि स्त्र कर जीते हैं और बढ़ते हैं। .
__मनुष्यों के सम्बन्ध में मनुष्यों में से अनेक कर्म भूमि में पैदा होते हैं, अनेक अकर्म भूमि में पैदा होते हैं, अनेक अन्तरद्वीप में पैदा होते हैं, अनेक आर्य और अनेक म्लेच्छ रूप में पैदा होते हैं । .
उनकी उत्पत्ति इस प्रकार होती है
स्त्री और पुरुष का पूर्वकर्भ से प्राप्त योनि में संभोग की इच्छा से संयोग होता है। वहाँ दोनों का रस इकट्ठा होता है। उसमें जीव .. स्त्री, पुरुष या नपुंसक के रूप में अपने अपने वीज (पुरुष . का बीज अधिक हो तो पुरुष, स्त्री का बीज अधिक हो तो स्त्री और दोनों का , समान हो तो नपुंसक होता है, इस मान्यता से) और अवकाश ..