Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra
Author(s): Gopaldas Jivabhai Patel
Publisher: Sthanakvasi Jain Conference

View full book text
Previous | Next

Page 139
________________ आर्द्धक कुमार १२३:] और, जो हमेशा दो हजार स्नातक भिक्षुयों को भोजन कराता है, वह पुण्य की महाराशि इकट्ठी करके मरने के बाढ़ श्ररूपधातु नामक स्वर्ग में महाप्रभावशाली देव होता है ? [ २६-२३ ] इस प्रकार जीवों को खुले श्रम हिंसा करना तो सुसंयमी पुरुषों को शोभा नहीं देता। जो ऐसा उपदेश देते हैं और जो ऐसा सुनते हैं, वे तो दोनों प्रज्ञान और कल्याण को प्राप्त होते हैं । जिसे संयम और प्रमादपूर्ण श्रहिंसाधर्म का पालन करना है और जो बस-स्थावर जीवों के स्वरूप को समझता है, वह तुम्हारे कहे अनुसार कभी कहेगा अथवा करेगा ? और तुम कहते हो ऐसा इस जगत् में कहीं हो भी सकता हैं ? खोल के पिंड को कौन मनुष्य मान 'लेगा ? जो ऐसा कहता है वह झूठा है और अनार्य है । [ ३०-३२ ] 4 . और भी मन में सत्य को समझते हुए भी बाहर से दूसरी बातें करना क्या संयमी पुरुषों का लक्षण है ? बड़े और मोटे मेढ़े को मार कर उसके मांस में नमक डालकर, तेल में तलकर पीपल बुखुरा कर तुम्हारे भोजन के लिये तैयार किया जाता है । उस मांस को मजे से उड़ाते हुए. हम पाप से लिप्त नहीं होते, ऐसा तुम कहते हो | इससे तुम्हारी रसलोलुपता और दुष्ट स्वभाव ही प्रकट होता है । जो वैसा मांस खाला हो, चाहे न जानते हुए खाता हो तो भी उसको पाप तो लगता ही है; तो भी ' हम जान कर नहीं खाते, इसलिये - >

Loading...

Page Navigation
1 ... 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159