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... १४.. . . . शास्त्र सीखने की इच्छा रखने वाले को कामभोगों का त्याग . .. करके प्रयत्नपूर्वक ब्रह्मचर्य सेवन करे और गुरु की आज्ञा का पालन .
करते हुए चारित्र की शिक्षा प्राप्त करे । चतुर शिष्य प्रमाद न करे । संखाई धम्मं च वियागरन्ति, बुद्धा हु ते अन्तकरा भवन्ति । ते पारगा दोण्ह वि मोयणाए, संसोधियं पण्हमुदाहरन्ति ।
. . धर्म का साक्षात्कार करके जो ज्ञानी उपदेश देते हैं, वे ही संशय का अन्त कर सकते हैं । अपनी तथा दूसरे की मुक्ति की साधना करने वाले समस्त प्रश्नों का समाधान कर सकते हैं ।
अन्ताणि धीरा सेवन्ति, तेण अन्तकरा इह । - : इह माणुस्सए ठाणे, धम्ममाराहिउं णरा ॥
बुद्धमान् मनुष्य (वस्तुओं के) अंत को लक्ष्य बनाये हुए हैं, अतएव वे संसार का अन्त कर सकते हैं। धर्म की आराधना के लिये ही हम मनुष्य · लोक में मनुष्य हुए है।
धम्मं कहन्तस्स उ णस्थि दोसो, खन्तस्स जिइन्दियस्स । भासाय दोसे य विवज्जगस्स, गुणे य भासाय णिसेवगस्स ॥
धर्म का कथन करनेवाला , यदि हात, दांत, जितेन्द्रिय, वाणी के दोषों से रहित और वाणी के गुणों को सेवन करने • वाला हो तो दोष नहीं लगता।