Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra
Author(s): Gopaldas Jivabhai Patel
Publisher: Sthanakvasi Jain Conference

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Page 158
________________ १४२ बायाभियोगेण जमावहेज्जा, णो तारिसं वायमुदाहरेज्जा । अट्ठाणमेयं वयणं गुणाणं, णो दिक्खिए बूय सुरालमेयं । . . जिस वाणी के बोलने से पाप को उत्तेजन मिले, उसे कभी . न बोले । दीक्षित मिधु गुणों से रहित और तथ्यहीन कुछ न बोले । बुद्धस्स आणाए इमं समाहि, अस्सि सुठिचा तिविहेणं ताई। . तरिउं समुदं व महाभवोघं, आयांणवं धम्ममुदाहरेज्जा ॥ ज्ञानी की आज्ञानुसार मोत-मार्ग में मन, वचन और काया से स्थित होकर जो अपनी इन्द्रियों की रक्षा करता है तथा जिसके पास समुद्र रूप इस संसार को पार कर जाने की सर्व सामग्री है, ऐसा मनुष्य भक्षे ही दूसरों को धर्मोपदेश दे।

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