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सूत्रकृतांग सन्न ma ...wwwwwwwwwwarramminimirrrrrrrr........... कई वार बस स्थावर होते हैं। कोई जीव स्थावर ही नहीं है या बस ही नहीं है । अब ऐसी प्रतिज्ञावाला गृहस्थ स्थावर जीवों की हिंसा का अपवाद (छूट) मानकर उनकी हिंसा करता है तो वह अपनी प्रतिज्ञा को भंग करता है । कारण यह कि स्थावर जीव अगले जन्म में बस हो सकते हैं । इसलिये, मैं कहता हूँ ऐसा नियम करावे तो कुछ दोष नहीं अावेगा । ' दूसरों की जबरदस्ती के सिवाय...थोड़ा भी करने की भावना से मैं 'अभी' बस रूप उत्पन्न जीवों की हिंसा नहीं करूं।' ऐसा नियम ही सच्चा नियम हो सकता है। इस प्रकार नियम कराने से ही सच्चा नियम कराया कहा जा सकता है । इसपर गौतम स्वामी ने कहा
हे आयुष्मान् ! तेरा कथन मुझे स्वीकार नहीं है क्योंकि वह यथार्थ नहीं है किन्तु दूसरे को उलझन में डालनेवाला है। तू जो उन गृहस्थों पर प्रतिज्ञाभंग का दोप लगाता है वह भी झूठा है क्योंकि जीव एक योनि में से दूसरी योनि में जाते हैं, यह सत्य होने पर भी जो जीव इस जन्म में बस रूप हुए हैं उनके प्रति ही प्रतिज्ञा होती है। तुम जिसको ‘अभी' स रूप उत्पन्न कहते हो उसी को हम स जीव कहते हैं। अतएव दोनों का अर्थ समान है। तो फिर हे श्रायुप्मान् ! तुम एक को सच्चा और दूसरे को झूठा क्यों कहते हो? तेरा यह भेद न्यायपूर्ण नहीं है। .. . स जीव उनको कहते हैं जिनको बस रूप पैदा होने के कर्म फल भोगने के लिये लगे होते हैं और इस कारण उनको वह नामकर्भ लगा होता है। ऐसा ही स्थावर जीवों का समझा जावे। - बादमें, गौतम स्वामी ने अपनी मान्यता का उदाहरण देते हुए कहा कि कितने ही मनुष्य ऐसा नियम लेते हैं कि जिन्होंने मुंडित