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सातवाँ अध्ययन
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नालन्दा का एक प्रसंग
श्री सुधर्मास्वामी बोले
पहिले राजगृह ( बिहार प्रान्त की वर्तमान राजगिर ) नामक नगर के बाहर ईशान्य कोण में नालन्दा नामक उपनगर ( नगर बाहर की वस्ती ) था । उसमें अनेक भवन थे। वहां लेप नामक धनवान गृहस्थ रहता था । वह श्रमणों का अनुयायी था । नालन्दा के ईशान्य कोण में रोपद्रव्या नामक उसकी मनोहर उदक शाला . ( स्नानगृह) थी; उसके ईशान्य कोण में हस्तिकाय नाम का उपवन था । उसमें के एक मकान में भगवान गौतम ( इन्द्रभूति) ठहरे थे । उसी उपवन में उनके सिवाय भगवान पार्श्वनाथ का अनुयायी निर्ग्रन्थ मेदार्थ गोत्रीय उदक पेढालपुत्र भी रहता था ।
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एक बार वह गौतम के पास श्राकर कहने लगा
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है श्रायुष्यमान् गौतम ! कुमारपुत्र नामक श्रमणनिर्गन्थ जो तुम्हारे मतको मानता है । वह व्रत नियम लेने को आये हुए गृहस्थ से ऐसा नियम करवाते हैं कि, 'दूसरों की जबरदस्ती के सिवाय, अधिक शक्य न हो तो थोड़ा ही करने की भावना से त्रसे जीवों की (ही) हिंसा मैं न करूंगा ।' परन्तु सब जीव त्रस - स्थावर योनियों में भटकते रहते हैं । कई बार स्थावर जीव दूसरे जन्म में बस होते हैं,