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श्राईक कुमार
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वेदवादी द्विज-जो हमेशा दो हजार स्नातक ब्राह्मणोंको जिमाता है,
प्राप्त
करके देव बनता है, ऐसा
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वह पुण्य - राशि ''देववाक्य है | [ ४३ ].
श्राईक - बिल्ली की भांति घर घर खाने की इच्छा से भटकने वाले दो हजार स्नातकों को जो जिमाता है, वह नरकवासी 'होकर, फाड़ने- चीरने को तड़फते हुए जीवों से भरे हुए नरक को प्राप्त होता है, देवलोक को नहीं । दयाधर्म को त्याग कर हिंसा धर्म स्वीकार करनेवाला मनुष्य शील से रहित एक ब्राह्मण को भी जिमावे तो वह एक नरक में से दूसरे नरक में भटकता रहता है । उसे देवगति क्यों कर प्राप्त होगी ? [ ४४-४५ ]
वेदान्ती - हम सब एक ही समान धर्म को मानते हैं, पहिले भी मानते थे और भविष्य में भी मानेंगे। अपने दोनों धर्मों है में प्रचार-प्रधान शील और ज्ञान को श्रावश्यक कहा पुनर्जन्म के सम्बन्ध में भी अपने को मत भेद नहीं है । . [ ४६ ] .
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परन्तु, हम एक, अव्यक्त, लोकव्यापी, सनातन, अक्षय और श्रव्ययात्मा को मानते हैं । वही सब भूतों को व्याप रहा है— जैसे चंद्र तारों को [ ४७ ]
श्राईक - यदि ऐसा ही हो तो फिर... ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और
प्रेष्य इसी प्रकार कीड़े, पति, साँप, मनुष्य और देव ऐसे.
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भेद ही न रहेंगे । इसी प्रकार ( विभिन्न सुख दुःखों का
अनुभव करते हुए ) वे इस संसार में भटके ही क्यों ?