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सूत्रकृतांग सूत्र
हमको दोष नहीं लगता, ' ऐसा कहना एकदम झूठ नहीं तो क्या है ?
सब जीवों पर अनुकम्पा वाले महामुनि ज्ञातपुत्र ऐसा दोषपूर्ण श्राहार त्याग करने की इच्छा से अपने लिये तैयार किया हुआ आहार ही नहीं लेते क्योंकि ऐसे आहार में दोष की शंका होती ही है। जो जीवों के प्रति जरा भी दुःख हो ऐसी प्रवृत्ति नहीं करते, वे ऐसा प्रमाद कैसे कर सकते हैं ? संयमी पुरुषों का धर्मपालन ऐसा ही सूक्ष्म होता है । [३५, ३७–४२ ]
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और भी, हमेशा दो दो हजार जिमाता है वह बड़ा असंयमी है। हाथोंवाला वह पुरुष इस लोकमें ही हैं, फिर तो परलोक में उत्तम सकती है ? [ ३६ ]
गति
स्नातक भिक्षुत्रों को
खून से लथपथ तिरस्कार का पात्र
कैसे प्राप्त हो
जिस वाणी से पाप को उत्तेजन मिलता है उसे कदापि न कहे । ऐसी तत्व की वाणी गुणों से रहित है । दीक्षित कहलाने वाले भिक्षु को तो कभी ऐसी वाणी नहीं बोलना चाहिये । [३३]
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पार पा
परन्तु, तुम लोगोने तो वस्तु के रहस्य का लिया है ! और प्राणियों के कर्मों के फल का भी विचार कर लिया है ! पूर्व समुद्र से पश्चिम समुद्र तक का सारा विश्व तुमको हथेली में ही दिखता है ! [३४]