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जो कामभोग और पूजन-सरकार को त्याग सके हैं, उन्होंने .. ___ सब कुछ. त्याग दिया है। ऐसे ही लोग मोक्ष-मार्ग में स्थिर रह __ सके हैं । [३-४-१७ उदगेण जे सिद्धिमुदाहरन्ति, सायं च पायं उदगं फुसन्ता। उद्गगस्स फासेण सिया य सिद्धी, सिन्झिसु पाणा बहवे दगंसि ।।
सुबह- शाम नदाने से मोद मिलता हो तो पानी में रहने वाले अनेक जीव मुक्त हो जावे । [७-१४]
उदयं जई कम्ममलं हरेज्जा, एवं सुहं इच्छामित्तमेव । - अंध व णेयारमगुस्सरिचा, पाणाणि चैव विणिहन्तिं मन्दा ॥
पानी पापकर्मों को धो सकता हो तो पुण्यकर्म भी धुल जावें ! यह सिद्धान्त तो मनोरथमात्र है। अंधे नेता को अनुसरण करनेवालों __के समान वे मूढ मनुष्य जीवहिंसा किया करते हैं। [७-१६] .
भारस्स जाआ मुणि भुजएजा, कंखेज पावरस विवेग भिक्खू । दुक्खेण पुढे धुयमाइएज्जा, संगामसीसे व परं दमेज्जा ॥
संयम की रक्षा के लिये ही मुनि आहार ग्रहण करे; पाप दूर हों, ऐसी इच्छा करे और दुःख पा पड़े तो संयम की शरण लेकर संग्राम में आगे खड़ा हो इस प्रकरा प्रांतरिक शत्रुओं का दमन । करे। [७-२६] . .
पमायं कम्ममाहंसु, अप्पमायं तहावरं ।
तब्भावादेसओ वा वि, बालं पण्डियमेव वा ॥ . प्रमाद की है और अप्रमाद अकर्म है। इनके होने से या , नहीं होने ही मनुष्य मूर्ख या पण्डित कहलाता है । [२.३ ]