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आहार-विचार
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(गर्भस्थान की दाहिनी बाजु में पुरुष, बायीं में स्त्री और बीच में नपुंसक होता है, इस मान्यता से) के अनुसार उत्पन्न होता है। वह जीव पहिले माता का रज पिता का वीर्य या दोनों मिलकर होनेवाली गदी वस्तु खाता है। बाद में गर्भ बड़ा होने पर माता जो विविध रसों का आहार खाती है उसका सत्त्व अपने एक भाग (नाल) के . .. द्वारा खाता है। जन्म होने के बाद जीव बालक रहता है तब तक ....माता का दूध पीता है और धी चाटता है। फिर धीरे धीरे घड़ा होकर
चावल, उड़द आदि स्थावर स प्राणों को खाता है !....... "
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इसी प्रकार पांच इन्द्रियवाले जलचर प्राणी जैसे मच्छ, शुंशुमार . श्रादि को समझा जावे, वे केवल छोटे रहने तक ( माता के दूध के बदले में) जल का रस खाते हैं। बड़े होने पर वनस्पति तथा स्थावरणास प्राणों को खाते हैं । . .
इसी प्रकार चार पैरवाले, जमीन के ऊपर चलनेवाले, पांच इन्द्रियवाले जैसे एक खुर वाले, दो खुर वाले, सुनार की एरण के समान पैरवाले (हाथी, गेंडे श्रादि) तथा नखवाले (सिंह, बाघ आदि) प्राणियों को समझा जावे। वे छोटे रहने तक ही माता का दूध पीते हैं पर बड़े होने पर वनस्पति तथा स्थावरत्रस प्राणों को खाते हैं। .
इसी प्रकार पेट से चलनेवाले पांच इन्द्रियवाले सांप, अजगर, श्राशालिक, महोरग श्रादि प्राणियों को समझा जावे। इनमें से कोई अंडे ... देते हैं और कोई बच्चों को जन्म देते हैं। वे छोटे' रहने तक वायु का आहार करते हैं, - बड़े होने पर वनस्पति तथा स्थावरनस प्राणों . को खाते हैं। .... ..
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