________________
पाँचवाँ अध्ययन
-(0)
सदाचारघातक मान्यताएं
श्री सुधर्मास्वामी बोले
ब्रह्मचर्य धारण करके निर्वाणमार्ग के लिये प्रयत्नवान् बुद्धिमान् भिक्षु निम्न सदाचारघातक मान्यता न रक्खे; जैसे पदार्थों को श्रनादि जान कर या अनन्त जान कर वे शाश्वत हैं या अशाश्वत हैं, ऐसा एक पक्ष न ले क्योंकि एक पक्ष लेने से व्यवहार या पुरुषार्थं घट नहीं सकता । इसलिये इन दोनों पक्षों को अनाचाररूप
समझे । [ १-२ ]
2
•
टिप्पणी - शाश्वत - हमेशा एक रूप रहने वाला, जैसे ग्रात्मा हमेशा बद्ध ही रहेगा, ऐसा मानें तो मोक्ष के लिये पुरुषार्थ नहीं घट सकता । आमा को यदि अशाश्वत परिवर्तन शील मानें तो मुक्त होने के बाद भी फिर वह हो, अतएव पुरुषार्थ नहीं
घट सकता 1
इसी प्रकार यह भी न कहे कि भविष्य में कोई तीर्थकर नहीं होंगे और सब जीव बन्धन युक्त ही रहेंगे या तीर्थकर हमेशा होते ही रहेंगे; छोटे या बड़े जन्तु को मारने का पाप बराबर है या नहीं