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सूत्रकृतांग सूत्र
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हे वत्स, असह्य दुःख कारक ऐसी नरक की वैतरणी नदी के विषय में तूने सुना है ? शस्त्रों की धार के समान तेज पानी की इस नदी को पार करने के लिये इन नरकगामियों को वहांके परमाधामी : देव भाले और तीर घुसेड घुसेड कर धकेलते हैं; अदि कहि बीच में श्राराम के लिये रुकते हैं तो वे फिर उनको शूल या त्रिशूल चुभाने लगते हैं । [-]
__“ इस नदी के समान वहां अनेक दुःख के सागर स्थान भरे पडे हैं । दुर्गन्ध, गरमी, अग्नि, अंधकार और अनेक प्रकार के शस्त्रास्त्रों की मार - ऐसे दुःख पहुंचाने के साधनों से भर-पूर उन , स्थानों में जीवों को दुःख दिया जाता है । वहां सदा अति दुःख की ऐसी चीत्कार होती रहती हैं, मानो किसी नगर का वध (कर ग्राम) हो रहा हो । परमाधामी देव पापियोंको उनके पापोंकी याद दिला-दिला कर मारते रहते रहते हैं । उन वेचारे जीवों को ये दुःख और मार-काट अकेले ही स्वयं सहन करना पड़ती हैं, वहां उन्हें कोई बचा भी तो नहीं सकता । अनेक पापों के करने वाले इन अनार्यों को, अपनी सब इष्ट और प्रिय वस्तुओं से अलग होकर, ऐसे अत्यन्त दुगंध पूर्ण भीड-भडके से खचाखच, मांस-पीप से भरे हुए उन घृणित असह्य ऐसे नरक स्थानों में बहुत समय बिताना पडता है। पूर्व भव के वैरी ही इस प्रकार वे नरक के देव क्रोध करके उन जीवों के शरीर पर शस्त्रास्त्रों के वार पर चार मारते हैं । हे आयुष्मान् ! ऐसा विकराल वास स्थान यह नरक है । पूर्व में जैसा किया हो, वैसा ही परलोक में साथ आता है । पापियों के पल्ले तो ऐसे नरक में सडना ही होता है।