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तेरह क्रियास्थान
mmercomes .. (७) अदत्तादान प्रत्ययिक-चोरी करने के पाप के कारण प्राप्त _' होने वाला क्रियास्थान । जैसे मनुष्य अपने स्वयं के लिये अथवा - अपनों के लिये चोरी करे, करावे या अनुमति दे .. .
. (5) अध्यात्म प्रत्ययिक-क्रोधादि विकारों के पाप के कारण प्राप्त होने वाला क्रियास्थान; जैसे कोई मनुष्य क्रोध, मान, माया, या लोभ इन चारों में से एक अथवा इन चारों दूषित मनोवृत्तियों से
युक्त होकर, किसी के कष्ट न दिये जाने पर भी दीन, हीन, द्वेष' युक्त, खिन्न और अस्वस्थ होकर शोकसागर में डूबा हुआ सिरपर ... हाथ रखकर चिन्तामग्न हो दुष्ट विचार करने लगे।
(6) मान प्रत्ययिक-मान अहंकार के पाप के कारण प्राप्त ' हुआ क्रियास्थान : जैसे कोई मनुष्य अपनी जाति, कुल, बल, । _.. रूप तप ज्ञान; . लाभ, ऐश्वर्य याः प्रज्ञा आदि से मदमत्त होकर .. । दूसरों की अवहेलना याँ तिरस्कार करे, अपनी प्रशंसा करे। .. ऐसा मनुष्य क्रूर, . घमंडी, चपल और अभिमानी होता है। वह मरने - के बाद एक योनि में से दूसरी योनि में और एक नरक में से .
दूसरे नरकमें भटकता रहता है। . .. ...
(१०) मित्रदोप प्रत्यायक-अपने कुटुम्बियों के प्रति बिना कारण सीमा के बाहर क्रूरता का पाप करने के कारण प्राप्त होने
वाला क्रियास्थान । जैसे कोई. मनुष्य अपने माता-पिता, भाई-बहिन, .. ' स्त्री, पुत्र-पुत्री और पुत्रवधु श्रादि के साथ रहता हो. उनको वह
छोटे २ दोष के लिये भी कठिन सजा देता है जैसे उन्हें ठण्डे पानी
में डुबावे, उनके उपर गरम पानी डालें, आग से डांव दे या रस्सी आदि - से मार मार कर उनका चमड़ा उधेड़ दें या लकड़ी श्रादि से उन को