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'तेरह कियास्थान
भोगेंगे। उनको मातृमरण, पितृमरण, भ्रातृमरण और इसी प्रकार पत्नी, पुत्र, पुत्री और पुत्रवधु की मृत्यु के दुःख भोगने होंगे तथा दारिद्रता, दुर्भाग्य, श्रनिष्टयोग और इष्टवियोग श्रादि अनेक प्रकार के, दुःख - संताप भोगने पडेंगे । उनको सिद्धि या बोध प्राप्त होना शक्य होगा । वे सब दुःखों का ग्रन्त नहीं कर सकेंगे।
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परन्तु जो श्रमण चाह्मण श्रहिंसा धर्म का उपदेश देते हैं, वे सब दुःखों को नहीं उठावेंगे और वे सिद्धि और बोध को प्राप्त करके सब दुःखों का अन्त कर सकेंगे । "
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पहिले के बारह क्रियास्थान को करने वाले जीवों को सिद्धि, बुद्धि और मुक्ति प्राप्त होना कठिन है, परन्तु तेरहवें क्रियास्थान को करने वाले जीव सिद्धि बुद्धि और मुक्ति प्राप्त करके सब दुःखों का अन्त कर सकेंगे । इसलिये, श्रात्मा के इच्छुक, श्रात्मा के कल्याण में तत्पर, आत्मा पर अनुकम्पा लाने वाले और श्रात्मा को इस कारागृह में से छुड़ाने का पराक्रम और प्रवृत्ति करने वाले मनुष्य अपनी श्रात्मा को इन बारह क्रियास्थानों से बचायें ।
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ऐसा श्री सुधास्वामी ने कहा ।