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तरह क्रियास्थान
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... इस प्रकार की चर्या से बहुत समय जीवन व्यतीत करने पर -'...जब उस' श्रमणोपासक का शरीर रोग. वृद्धावस्था, श्रादि विविध , संकटों से घिर जाता है तब अथवा यों ही भी वह खाना-पीना
छोड देता है तथा अपने किये हुए पाप-कमों को गुरु के सामने निवेदन करके उनका प्रायश्चित स्वीकार करके समाधियुक्त होता है (मारणान्तिक संलेपणा धारण करता है) और श्रायुज्य पूर्ण होने पर मृत्यु को प्राप्त हो कर महाऋद्धि और महाद्युति से युक्त देवलोकोंमें ले किसी देवलोक में जन्म लेता है। . . यह स्थान प्रार्य है, शुद्ध है, संशुद्ध है और सब दुःखों को क्षय करने का मार्गरूप है। ..
यह मिश्र नामक तीसरे स्थान का वर्णन हुआ। . जो मनुष्य पाप से विरक्त नहीं होता, वह बालक के समान मूंड है और जो विरक्त हो जाता है, वह पंडित है; जो कुछ है और कुछ नहीं है, वह बाल और पंडित है। . .
जो अविरति से युक्त है वही स्थान हिंसा का है और त्याज्य है। जो विरति का स्थान है, वही अहिंसा का है और स्वीकार करने योग्य है । जिसमें कुछ विरति और कुछ अविरति है, वह स्थान हिंसा . और अहिंसा दोनों का है। (तो भी) वह आर्य है, संशुद्ध है और सब दुःखों को क्षय करने का मार्गरूप है। . . .
....... - [अव उपसंहार में सारे अध्ययन के साररूप एक आख्यायिका कहते हैं-:. ... .. . .
क्रियावादी, प्रक्रियावादी,, अज्ञानवादी, और विनयवादी, ऐसे विभिन्न वादियों की संख्या ३६३ कही जाती है। सब लोगों को ये परिनिर्वाण .