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सूत्रकृतांग सूत्र
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और मोक्ष का उपदेश देते फिरते हैं। वे अपनी अपनी प्रज्ञा, छन्द, .. शील, दृष्टि, रुचि, 'प्रवृत्ति और संकल्प के अनुसार अलग अलग धर्भमार्ग स्थापित करके उनका प्रचार करते हैं।
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एक समय ये सब वादी एक बड़ा घेरा बनाकर एक स्थान पर बैठे थे। उस समय एक मनुष्य जलते हुए अंगारों से भरी हुई एक कढ़ाई लोहे की संडासी से पकड़ कर जहाँ वे सब बैठे थे, उठा कर लाया और कहने लगा-'हे मतवादियो! तुम सब अपने अपने धर्ममार्ग के प्रतिपादक हो और परिनिर्वाण तथा मोक्ष का उपदेश देते फिरते हो। तुम इस जलते हुए अंगारों से भरी हुई कढ़ाई को एक मुहूर्त तक खुले हुए हाथ में पकड़े रहो।'
ऐसा कह कर वह मनुष्य उस जलते हुए अंगारों की कढ़ाई को प्रत्येक के हाथमें रखने को गया। पर वे अपने अपने हाथ पीछे हटाने लगे। तब उस मनुष्य ने उनसे पूछा--" हे मतवादियो! तुम अपने हाथ पीछे क्यों हटाते हो ? हाथ न जलें इस लिये ? और जले तो क्या हो ? दुःख ? दुःख हो इसीलिये अपने हाथ पीछे हटाते हो, यही बात है न?
"तो इसी गज या माप से दूसरों के सम्बन्ध में भी विचार करना यही धर्मविचार कहा जाय या नहीं ? वस; तब तो अब नापने .. का गज, प्रमाण और धर्मविचार मिल गये ! श्रतएव जो श्रमण ब्राह्मण ऐसा कहते हैं और उपदेश देते हैं कि सब प्राणियों का मारना चाहिये, उनके पास जबरदस्ती से काम लेना चाहिये, दुःख देना चाहिये, वे . सब भविष्य में इली प्रकार छेदन-भेदन और जन्म, जरा, मरण को प्राप्त होंगे और अनेक योनियों में भटकते हुए भवसागर के दुःखों को
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