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तेरह क्रियास्थान
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कितने ही लोग गडरिये बनकर मेंढे श्रादि प्राणियों को मार कर आहार आदि भोग सामग्री प्राप्त करते हैं; कुछ.. कसाई बनकर पाढ़े आदि प्राणियों को मार-काट कर, जाल बिछाने वाले बनकर हरिन श्रादि प्राणियों को मार-काट कर या चिडीमार बन कर पंक्षी आदि प्राणियों को मार-काट कर, या मछुआ बनकर मच्छी श्रादि प्राणियों को मार-काट कर, या ग्वाला बन कर गाय आदि प्राणियों को मार कर, या गाय काटने वाले कसाई बन कर गाय आदि को मार-काट कर, या शिकारी कुत्ते पालने वाले बन कर कुत्ते आदि को मार-काट कर, या उस कुत्ते वाले के सहायक बन कर कुत्ते आदि प्राणियों को मार-काट कर अपने या अपनों के लिये श्राहार आदि भोग सामग्री प्राप्त करते हैं। इस प्रकार वे अपने पापकर्मी से अपनी अधोगति
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करते हैं 1.
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और भी, कितने ही लोग जब सभा में बैठे होते हैं तो कारण ही खड़े हो कर कहते हैं, 'देखो, मैं उस पक्षी को मारता हूं !' ऐसा कह कर वे तीतर, बटेर, लावा, कबूतर या कपिंजल आदि प्राणियों को मार डालते हैं ।
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कितने ही लोग खेत-खजे या दारू-शराब के बेचने में झगड़ा, हो जाने या किसी कारण से चिढ़ : जाने से उस गृहस्थ अथवा उसके लड़कों के खेतों में खुद या दूसरों से श्राग लगवा देते हैं, या उनके ऊँट, गाय, घोड़े, गधे आदि पशुओं के अंगों को खुद या दूसरों से कटवा देते हैं; या उनके पशुओं के बांडों को काँटों-खाडों से भर कर खुद या दूसरों से आग लगा देते हैं; या उनके कुंडल, मणि, मोती आदि बहुमूल्य वस्तुएँ खुद या दूसरों से लुटा देते हैं;
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या उनके घर पर आये हुए श्रमण-ब्राह्मणों के छत्र, दंड, पात्र श्रादि
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