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सूत्रकृतांग सूत्रः
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सच्ची और स्थायी शान्ति प्राप्त करने के लिये भिक्षाचर्या - स्वीकार करते हैं; सद्गुरु के पास से महापुरुषों का कथित धर्म जान कर प्रयत्न पूर्वक उसमें प्रवृत्त होते हैं और सब पापस्थानों से निवृत्त होकर तथा सबै शुभ साधन सम्पत्ति प्राप्त करके सिद्धि को प्राप्त . . करते हैं। . : .
, यह धर्मस्थान आर्य हैं, शुद्ध है...मोक्षमार्ग के अनुकूल है और सब दुखों को. क्षय करनेवाला मार्ग होने से अत्यन्त योग्य है। ...
हे वत्स, कितने ही लोग बाहर से धर्मस्थान में लगे हुए अधर्मस्थान को सेवन करने के कारण मिश्रस्थानी होते हैं। वे साधु, तापस बन कर अरण्य में, श्राश्रम में या गांव के बाहर रह कर गुप्त क्रिया और साधना करते रहते हैं; वे पूर्ण संयमी नहीं होते या सब प्राणियों की कामना या हिंसा से विरक्त भी नहीं होते । स्त्री
आदि कामभोगों में मूढ वे कम-ज्यादा कामभोगों को भोग कर नियत समय पर मत्यु को प्राप्त होकर, असुर और पातकी के स्थान .. को जाते हैं, वहाँ से छुटकारा होने पर गूंगे; अन्धे या बहरे होकर . जन्म लेते हैं।.. .
- [अधर्मरूपी प्रथम स्थान को फिर वर्णन करते हैं। ]
इस जगत् में कितने ही लोग बड़ी इच्छावाले, बड़ी प्रवृत्तिवाले, बड़े परिग्रहवाले.. अधार्मिक, अधर्मपरायण, अधर्म के अनुमोदक, अधर्म के उपदेशक, अंधर्भयुक्त और वैसे ही स्वभाव और श्राचारं से युक्त होते हैं । वे मनुष्य संसार में अधर्म के द्वारा ही आजीविका
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