Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra
Author(s): Gopaldas Jivabhai Patel
Publisher: Sthanakvasi Jain Conference

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Page 106
________________ ma सूत्रकृतांग सूत्र... . .. . .। पीटे। ऐसा मनुष्य जब तक घर में होता है, सब मनुष्य बड़े दुःखी .. रहते हैं और उसके बाहर, जाते.ही वे प्रसन्न . होते हैं । वह बातः .. यात में नाराज हो जाता है । चाहे जैसी सजा उनको. देता है. और ... उनकी पीठका मांस तक जल उठे ऐसे गरम वचन बोलता हैं। (१५) माया प्रत्ययिक-माया छल-कपट के पाप के कारण प्राप्त होने वाला क्रियास्थान । कितने ही मनुष्य मायावी और कपटी होते हैं, उनके कोई काम सीधे नहीं होते । उनकी नियत दुमरों को धोखा देने की होती है। उनकी प्रवृत्ति गृह और गुप्त होती है । वे अन्दर से तुच्छ होने पर भी बाहर अच्छे होने का ढोंग करते हैं। आर्य होने पर भी वे अनायों की भापायों में (गुप्त संकेतों में) बोलते हैं पूछा हो उसका उत्तर न देकर कुछ दूसरा ही कहते हैं, कहना हो वह न कह कर कुछ और ही कहते हैं। उनका कंपटी मन कभी निर्भल नहीं होता। वे अपने दोष कभी स्वीकार नहीं करते । न उनको फिर कहने का निश्चय ही वे करते हैं; न उनके प्रति निन्दा या घृणा ही वे प्रकट करते हैं और न वै यथायोग्य तप.. कम से उनका प्रायश्चित ही लेते हैं। ऐसे मनुष्यों का इस लोकमें कोई विश्वास नहीं करता और परलोक में भी वे नरक आदि हीन गति में .. वारवार जाते हैं। . (१२) लोभ प्रत्ययिक-कामभोग श्रादि विषयों में आसक्ति के पापके कारण प्राप्त होने वाला क्रियास्थान । कितने ही (तापस अथवा साधु). अरण्य में, आश्रम में अथवा गांव के बाहर रहते हैं और अनेक गुप्त क्रियाएं और साधना करते हैं परन्तु वे पूर्ण संयमी नहीं होते और न सब भूतप्राणियों की (कामना और हिंसा) से सर्वथा विरक्त होते हैं। वे स्त्री आदि कामभोगों में श्रासक्त और मूर्छित रहते हैं।

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