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सूत्रकृतांग सूत्र.
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' ही जीव रहता है, और उसके नाश होते ही जीव का भी अन्त हो। जाता है । फिर लोग उसको जलाने के लिये ले जाते हैं । अाग .. से शरीर जल जाता है, हड्डे ही पड़े रह जाते हैं। उसकी अर्थी - (तरगटी) और उसको उठाने वाले चार मनुष्य रह जाते हैं । इस ... लिये शरीर से जीव अलग नहीं है । जो लोग ऐसा कहते हैं कि
जीव और शरीर अलग अलग हैं, उनसे पूछो तो कि वह जीव लम्या : ' है, छोटा है, तिकोना है, चौकोना है, लाल है, पीला है सुगन्धी है,
दुर्गन्धी है, कड़वा है, तीखा है, कठिन है, नरम है, भारी है, हलका है .. . ? म्यान में से तलवार को बाहर खींच कर बताने के समान .. कोई अात्मा को शरीर से अलग निकाल कर नहीं बता सकता अथवा तिल्ली में से तेल या दही में से मक्खन के समान अलग निकाल : कर नहीं बता सकता । इस लिये, हं भाइयो ! यह शरीर है तभी तक जीव है । परलोक आदि कुछ नहीं है क्यों कि मरने के बाद वहां जानेवाला कोई नहीं रहता । इस लिये शरीर के रहने तक मारो, खोदो छेटो, जलाओ, पकायो लूटो, छीनो-मन भाये वही करो-पर. सुखी होयो ।
इस प्रकार अनेक अविचारी मनुष्य प्रव्रज्या लेकर अपने कल्पित . धर्म का उपदेश देते हैं । वे क्रिया-प्रक्रिया, सुकृत-दुप्कृत, कल्याण : पाप, साधु-असाधु, सिन्द्वि-असिद्धि. नरक या अनरक कुछ भी नहीं मानते (क्यों के मृत्यु के बाद प्रात्मा तो रहता ही नहीं )। वे अनेक प्रवृतियों से कामभोगों का सेवन करते रहते हैं । उन पर श्रद्धा रखनेवाले लोग कहते हैं, 'वाह, बहुत ठीक कहा, बिलकुल सत्य कहा । हे श्रमण, हे ब्राह्मण, हे श्रायुप्मान्, हम खानपान, मुखवास, मिठाई, वन पात्र, क बल और रजोहरण अर्पण करके श्रापका सत्कार करते हैं।