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सूत्रकृतांग सूत्र :
mamimom . लोक प्रवृत्ति का मुख --- साधन हैं । इसलिये, मनुष्य कुछ खरीदेखरीदवावे, मारे.-मराचे, पकावे-पकवावे, और खुद मनुष्य की खरीद कर पकाबावे तो उसमें कुछ दोप नहीं ।' इस प्रकार. ये लोग भी . ' किया-प्रक्रिया, सुकृत-दुप्कृत, कल्याण-पाप आदि कुछ न मानने के कारण विविध प्रवृतियों द्वारा विविध कामभोगों को भोगते रहते हैं। वे भी न तो इस ओर आ सकते हैं और न पार ही जा सकते हैं । पर बीच में ही कामभोग में फंसे रह जाते हैं। पंच महाभूतों को. : मानने वाले दूसरे पुरुष का वर्णन पूरा हुआ । [१०] . .
अव ईश्वर को ही सब का कारण मानने वाला तीसरा पुरुष पाता। है। वह कहता है, संसार के सब पदार्थो का श्रादि ईश्वर है, अन्त भी ईश्वर है । उनको ईश्वर ने बनाया है; वे ईश्वर में से उत्पन्न हुए हैं. ईश्वर के द्वारा प्रकाशित हुए हैं और उसके श्राश्रय पर ही रहते हैं: - जैसे दुःख दर्द शरीर में उत्पन्न होता हैं, शरीर में रहता है। श्रमण निर्ग्रन्थ के उपदेश दिये हुए. रचे हुए, और प्रचलित बारह . अंग रूपी गणि पिटक मिथ्या है, सत्य-यथार्थ नहीं हैं किन्तु, हमारा यह सिद्धान्त सत्य और यधार्थ है। इस प्रकार सब कुछ ईश्वराधीन मानने वाले वे क्रिया - अक्रिया, सुकृत - दुष्कृत .. श्रादि कुछ मानते नहीं हैं, इस कारण वे विविध प्रवृत्तियों द्वारा .. विविध काम भोग भोगते रहते हैं। अपने इस मत को वे दूसरे को . समझाते हैं और सब जगह प्रचार करते हैं। पर वे पक्षी जैसे पांजरे में से नहीं छट सकता वैसे ही वे अपनी मोटी बुद्धि से - पैदा होने वाले कर्म और दुःख से नहीं छुट सकते हैं और इस पार आने या उस पार चहुँचने के बजाय वे बीच में ही ,कामभोगों में फंस . जाते हैं । इस प्रकार ईश्वर को सबका कारण मानने वाले तीसरे पुरुष का वर्णन पूरा हुया । [११] . . . .