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(१४) आच्छेद्य-दुर्बल अथवा नोकर के पाससे छीन-छुड़ा कर • देना । (१२) अनिसृष्ट - दो-तीन मालिक की · वस्तु एक ... "दूसरे से बिना पूछे देना; (१६) अध्यवपूर--पकते हुए भोजन
में साधु को देख कर और डाल देना । ..१६ उत्पादनदोप-(१) धात्रीकर्म- अाहार प्राप्ति के लिये गृहस्थ के बालक को दाई के समान खेलावे ! (२) दूतगृहस्थ के सम्बन्धियों के समाचार ला दें । (३) निमित्तसुख-दुःखं, लाभ, हानि, का भविष्य बताये । (४)-आजीविकस्वयं दाता के जाति-कुल का है, ऐसा कहे । (६) वनीपकगृहस्थ और उसको इष्ट वस्तु की प्रशंसा करे,. अपना दुःख प्रकट करे इत्यादि । (६) चिकित्सा-दवाई करे । (७) क्रोधपिण्ड-शाप आदि की धमकी दे । (८) मानपिंडमैं ने तो तेरे यहां से ग्राहार लेने की होड़ लगाई है ऐसा कहे । (6) मायापिण्ड-चेप आदि बदलकर आवे । (१०) लोभपिण्ड-रसयुक्त भोजन प्राप्ति का प्रयत्न करे । (११) संस्तवपिंड-आहार लेने के पहिले अथवा पीछे गृहस्थ की स्तुति करे । (१२) विद्यापिंड-विद्या के द्वारा प्राप्त करे। (१३)
मंत्रपिंड-मंत्र आदि द्वारा प्राप्त करे। (१४) चूर्णयोग- वशीकरण आदि के चूर्ण सिखा कर प्राप्त करे। (१५) योग
पिंड-अदृश्य होने आदि के लिये अंजन आदि योग सिखा . दे। (१६) मूलकर्म-मघा, मूल श्रादि नक्षत्रों की शांति के लिये मूल आदि से स्नान आदि अनुष्ठान सिखा दे।
ग्रहणेपणा के इस दोष-(१) शंकित-दाता को आहार देते संदीप-निर्दोष की शंका हो। (२) म्रक्षित-जल आदि