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सूत्रकृतांग सूत्र
प्रवृत्तियुक्त, ग्रपने कल्याण में तपर, जितेन्द्रिय वह भिक्षु श्रमण ब्राह्मण, क्षांत, दांत गुप्त (प्रशुभ प्रवृतियों से अपनी रक्षा करने वाला ) मुक्त, ऋषि, मुनि, कृति, विद्वान्, भिक्षु, स्तु ( कठोर संयम पालने चाला ), मुमुक्षु और चरण करण (पंच महाव्रत चरण और उनकी रक्षा के के लिये समितिगुप्ति आदि करण ) का पार जानने वाला कहलाता हैं । [ १४–१५ ]
ऐसा श्रीसुधर्मास्वामी ने कहा ।